वृंदावन,भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा वो धार्मिक शहर जो मंदिरों के साथ-साथ विधवाओं के लिए भी प्रसिद्ध है। वृंदावन को ‘विधवाओं का शहर’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां हजारों विधवाएं भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन रहती हैं। ये महिलाएं जीवन के दुखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से वृंदावन की शरण में आती हैं। वृंदावन की सड़कों पर ही करीब 15,000 विधवाएं रहती हैं। जहां कुछ विधवाएं आश्रय सदनों में रहती हैं, तो वहीं कुछ विधवाएं भजनश्रमों में भजन गाकर अपना गुज़ारा करती हैं। लेकिन यहां सवाल ये है कि आखिर देशभर की विधवाएं वृंदावन में हीं शरण क्यों लेती हैं। तो आइए इसका उत्तर इस लेख में जानते हैं।
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कृष्ण भक्ति
विधवाओं का वृंदावन में आना, भगवान कृष्ण की निकटता से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में माना जाता है कि वृंदावन भगवान कृष्ण की पवित्र भूमि है, जहां उनकी बाल और युवा लीलाएं हुईं। विधवाएं यहां आकर भगवान कृष्ण के सानिध्य में रहना चाहती हैं ताकि उन्हें जीवन के अंत में मोक्ष की प्राप्ति हो सके। भारतीय समाज में विधवा महिलाओं के लिए सामाजिक और मानसिक पीड़ा के चलते, वे भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आस्था और भक्ति में शांति खोजती हैं। वृंदावन में विधवाओं के लिए मंदिरों में कृष्ण भजन और पूजा-अर्चना की व्यवस्था होती है, जहां वे दिन-रात भक्ति में लीन रहती हैं। इसे वे अपनी मुक्ति और कष्टों से छुटकारा पाने का साधन मानती हैं।
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सामाजिक तिरस्कार

भारतीय समाज में विधवाओं को सदियों से तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ा है। पति की मृत्यु के बाद, अनेक महिलाएं अपने परिवार और समाज द्वारा बहिष्कृत कर दी जाती हैं। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, विधवाओं को अशुभ माना जाता है और उन्हें सामाजिक और धार्मिक आयोजनों से दूर रखा जाता है। कई परिवार उनकी देखभाल करने से मना कर देते हैं या उन्हें एक आर्थिक बोझ समझते हैं। ऐसी स्थिति में, ये महिलाएं कृष्ण भक्ति के सहारे वृंदावन चली आती हैं।
वृंदावन में वे अन्य विधवाओं के साथ मिलकर एक सामाजिक सहारा प्राप्त करती हैं। यहां के मंदिरों में उन्हें स्थान मिलता है,जहां वे बिना किसी सामाजिक दबाव के अपना जीवन गुजार सकती हैं। वृंदावन में भगवान कृष्ण की पूजा और भक्ति करने से उन्हें यह आशा होती है कि उनका जीवन सिर्फ सामाजिक तिरस्कार के लिए नहीं, बल्कि भक्ति और मोक्ष के लिए समर्पित है। यह शहर उन्हें वह सांत्वना और सुरक्षा प्रदान करता है जो उन्हें समाज से नहीं मिल पाती।
खराब आर्थिक स्थिति
भारत में कई विधवाएं आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं और उनके परिवारों की भी स्थिति ऐसी नहीं होती कि वे उनकी देखभाल कर सकें। खासकर वृद्ध विधवाओं को यह समस्या अधिक झेलनी पड़ती है। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने पर वृद्ध महिलाओं की देखभाल करना कठिन हो जाता है और उन्हें परिवार से बाहर निकाल दिया जाता है या उनकी उपेक्षा की जाती है। इसके कारण विधवाओं को मजबूरन वृंदावन जैसी जगहों की शरण लेनी पड़ती है, जहां उन्हें आश्रय और भोजन मिल सके।
वृंदावन में कई धर्मार्थ संस्थान और आश्रम हैं जो इन महिलाओं के लिए भोजन, रहने की जगह और चिकित्सा सुविधा प्रदान करते हैं। यह आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं के लिए एकमात्र विकल्प बन जाता है, क्योंकि उनके पास किसी अन्य प्रकार की सहायता उपलब्ध नहीं होती। इन संस्थानों में विधवाएं न सिर्फ शरण पाती हैं, बल्कि एक सामाजिक सुरक्षा का अनुभव करती हैं जो उन्हें परिवार में नहीं मिल पाता। इसलिए वृंदावन में विधवाओं का आना केवल धार्मिक आस्था ही नहीं,बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का भी परिणाम है।