पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता के त्रिकोणीय संगम को अपनी आंचल में समेटे। शोर-शराबे से बहुत दूर और प्रकृति के बेहद करीब स्थित टटिया स्थान, शांति और आनंद का केंद्रबिंदु है। जिसके बारे में कहा जाता है कि, इस स्थान पर आज भी कलयुग नहीं पहुंच पाया। तो आइए वृंदावन के इस अद्भुत स्थान के भ्रमण पर चलते हैं।
क्या है टटिया स्थान ?
टटिया स्थान वृन्दावन का एक ऐसा मनमोहक स्थान है, जहां पर साधु-संत जन सांसारिक मोह माया से दूर श्री कृष्ण के ध्यान में लीन होने के लिए आते हैं। टटिया स्थान विशुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है। जिसकी सबसे खास बात ये है कि, इस स्थान पर किसी भी प्रकार की आधुनिक तकनीक का प्रयोग नहीं किया जाता। जहां प्रवेश करते हीं ऐसा लगता है, जैसे व्यक्ति कई शताब्दी पीछे चला गया हो। यहां पर किसी भी यंत्र, मशीन या बिजली का प्रयोग नहीं होता है। मोबाइल फोन तो दूर, यहां आपको पंखे और बल्ब तक नहीं मिलेंगे। यही कारण है कि, इस स्थान को कलयुग से दूर माना जाता है। जहां आपको आधुनिक तनिकों की एक झलक तक देखने को नहीं मिलेगी।
यह भी पढ़ें – बहुलावन (Bahulavan) इतिहास – जब एक गाय को बाघ से बचाने के लिए प्रकट हुए श्री कृष्ण
टटिया स्थान का इतिहास | Tatiya Sthan History
टटिया स्थान स्वामी हरिदास सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है। जिसके सातवें आचार्य स्वामी ललित किशोरी देव जी ने, 1758 और 1823 के बीच इस धरती पर एक निर्जन वृक्ष के नीचे निवास किया था। ताकि एकांत में ध्यान किया जा सके। कहते हैं उन्होंने यहां बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया था। स्थानीय बोली में बांस की छड़ियों को “टटिया” कहा जाता है। इस तरह इस स्थान का नाम टटिया स्थान पड़ा।
यही नहीं आचार्य ने यह सुझाव भी दिया कि, राधा अष्टमी के दिन श्री हरिदास जी का प्रकट दिवस मनाया जाना चाहिए और तब से यहां यह त्योहार बहुत प्रेम से मनाया जाता है। जिनकी टटिया स्थान पर समाधि भी मौजूद है।
यह भी पढ़ें – चन्द्रसरोवर और सूरदास की भक्ति, यहाँ श्री कृष्ण ने किया था महारस
क्यों खास है टटिया स्थान – Why Tatiya Sthan is special?
अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाना जाने वाला टटिया स्थान, अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे से भरा हुआ है। जहां मौजूद एक-एक पेड़ को भगवान के समान माना जाता है। यहां का हर पेड़ देवताओं को समर्पित है। टटिया स्थान में मौजूद इन तमाम पेड़ों में नीम, पीपल और कदंब के पेड़ों की संख्या सबसे ज्यादा है। यही नहीं इस स्थान पर मौजूद सभी पेड़-पौधे अपनी अलग-अलग विशेषताओं के लिए भी जाने जाता हैं। जैसे कि कुछ पेड़ों के पत्तों पर ‘राधा’ नाम दिखना। माना जाता है कि यहां के पत्तों पर भी राधा नाम उभरा हुआ दिखता है।
लेकिन जो बात टटिया स्थान को वृंदावन में मौजूद सभी देवस्थलों से खास बनाती है, वो है यहां आरती ना होने की परंपरा। जी हाँ ! टटिया स्थान पूरे वृंदावन का एक मात्र ऐसा देव स्थान है, जहां आरती नहीं होती। जहां आरती की जगह भजन का रिवाज है। जहां भक्तगण बैठकर, राधा-कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भजन गाते हैं। जिसके बारे में कहते हैं कि, भजन के दौरान भक्तों को स्वयं यहां पर बिहारी जी और राधा रानी के होने का आभास होता है। जो बात टटिया स्थान को और भव्य और दिव्य बनाती है।