Shrinathji Mandir Nathdwara – यहाँ धंसा था नाथ जी के रथ का पहिया

Shrinathji Mandir Nathdwara

राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित नाथद्वारा शहर, भगवान श्री कृष्ण के श्रीनाथजी मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यहाँ प्रतिवर्ष लाखों भक्त भगवान श्रीनाथजी के दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीनाथजी भगवान श्रीकृष्ण के 7 वर्ष का बालस्वरूप है, जिनका हाथ और चेहरा पहले मथुरा के गोवर्धन पर्वत पर उभरा था। तो आइए इस मंदिर के बारे में कुछ और रोचक बातें जानते हैं।

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मंदिर का इतिहास

श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की यह मूर्ति मूल रूप से मथुरा के गोवर्धन पर्वत पर स्थापित थी। मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में हिंदू धर्मस्थलों पर बढ़ते अत्याचारों के कारण, भक्तों ने इस मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए इसे वहां से हटाने का निर्णय लिया। जब यह मूर्ति राजस्थान के नाथद्वारा पहुंची, तो नाथजी के रथ का पहिया मिटटी में धंस गया | यह नाथ जी का सन्देश समझ कर स्थानीय शासकों ने इसे यहां स्थापित करने का निर्णय लिया।

मूर्ति की स्थापना के लिए एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया, जिसे ‘श्रीनाथजी की हवेली’ कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा राज सिंह द्वारा कराया गया था, जो मेवाड़ के शासक थे। उन्होंने इस मंदिर को शाही संरक्षण प्रदान किया, जिससे यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

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मंदिर का महत्व

श्रीनाथजी मंदिर धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ प्रतिदिन हजारों भक्त भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने आते हैं। नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी की पूजा वैष्णव संप्रदाय के अनुसार की जाती है, जिसमें दिनभर में कई बार भगवान को भोग लगाया जाता है और विभिन्न रागों में उनकी स्तुति की जाती है। यह मंदिर न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में भगवान श्री कृष्ण के प्रति आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। श्रीनाथजी मंदिर की प्रतिष्ठा के कारण नाथद्वारा शहर को ‘श्रीनाथजी की नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि,श्रीनाथजी के दर्शन मात्र से ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

अंततः श्रीनाथजी का मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और वास्तुकला की धरोहर भी है। इसकी भव्यता और ऐतिहासिकता इसे एक ऐसा स्थल बनाती है, जिसे हर श्रीकृष्ण भक्त और इतिहास प्रेमी को अवश्य देखना चाहिए।  

मंदिर की बनावट

श्रीनाथजी मंदिर की बनावट में राजस्थानी स्थापत्य कला का अद्वितीय मेल दिखाई देता है। मंदिर का मुख्य द्वार जिसे ‘हवेली’ कहा जाता है, शाही महलों की तरह दिखता है। जिसमें राजस्थानी शैली की खूबसूरत नक़्क़ाशी की गई है। मुख्य द्वार के भीतर प्रवेश करते ही मंदिर की भव्यता का अनुभव होता है, जिसमें संगमरमर और चूना पत्थर का अत्यधिक उपयोग किया गया है।

मंदिर के भीतर भगवान श्रीनाथजी की मूर्ति एक बड़े मंच पर स्थापित है, जिसे श्रद्धालु ‘सिंहासन’ कहते हैं। मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है, जो भगवान श्री कृष्ण के ‘गोवर्धनधारी’ स्वरूप को दर्शाती है। मंदिर के चारों ओर विभिन्न छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। मंदिर परिसर में सुन्दर बगीचे और जलाशय भी हैं, जो इसकी शोभा को और भी बढ़ाते हैं। श्रीनाथजी मंदिर की आंतरिक सजावट अत्यंत भव्य और अलंकारिक है, जिसमें सुनहरे चांदी के आभूषणों का भरपूर प्रयोग किया गया है।