हमारा देश भारत सदैव ही अपने विशाल आकर्षक मंदिरों को लिए जाना जाता रहा है | सदियों से विह्व से लोग यहाँ की वास्तुकला का नमूना देखने आया करते हैं | हांलाकि आज के समय में उत्तर भारत में ज्यादा पुराने और आलिशान मंदिर नहीं बचे हैं, किंतु कुछ मंदिर आज भी अपनी पौराणिक काल की कथा सुनाते हैं | उन्ही में से एक है वृन्दावन का गोविन्द देव मंदिर |
विषय सूचि
दर्शन का समय
प्रात:- 04:30 AM – 12:30 PM
सायं – 05:30 PM – 09:00 PM
मेरो वृन्दावन एंट्री पॉइंट से दुरी – 8.2 KM
Govind Dev Ji Mandir वास्तुकला
यह पूरा मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है | यह वृन्दावन के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है जो पारंपरिक हिंदू मंदिर शैली के बजाय, एक हवेली के रूप में बनाया गया है। इस इमारत में हिंदू और अरबी स्थापत्य शैली का मिश्रण है। और अधिकांश हिंदू मंदिरों के विपरीत, मंदिर की दीवारों पर धार्मिक कहानियों के दृश्य चित्रित नहीं हैं। पूरा मंदिर लाल बलुआ पत्थर के ब्लॉकों से बनाया गया है। मंदिर के बायीं ओर रूप गोस्वामी जी की भजन कुतिया है | वहीँ एक बेसमेंट भी है जिसकी सीढियां निचे लेजाती हैं जिस स्थान पर गोस्वामी जी को विग्रह प्राप्त हुआ था |
गोविन्द देव जी मंदिर – Govind Dev Ji Mandir History
16वीं शताब्दी में जब अकबर का राजा हुआ करता था था, तब बांग्लादेश से मुगलों को टेक्स्ट (कर) मिला करता था | बांग्लादेश के एक प्रांत, जैसोल में एक हिंदू राजा ने मुगलों को टैक्स देना बंद कर दिया | क्योंकि उस समय जयपुर के महाराजा मानसिंह अकबर के सेनापति हुआ करते थे, अकबर ने जैसोल के राजा से युद्ध करने के लिए सेनापति मानसिंह को भेजा |
युद्ध करने से पहले राजा मान सिंह वृंदावन के वन में से गुजरते समय रूप गोस्वामी जी से आशीर्वाद लेने आए | उस समय रूप गोस्वामी जी को श्री गोविंद देव जी की प्रतिमा प्राप्त भी हो चुकी थी | तब प्रतिमा उनकी कुटिया में रखी थी | राजा मान सिंह भगवान गोविंद देव जी से जैसोल पर विजय प्राप्ति का आशीर्वाद लेकर जाते हैं और वचन देते हैं की अगर जैसोल पर विजय प्राप्त होती है, तो मान सिंह भगवान गोविंद देव जी का मंदिर बनवाएंगे |
जैसोल पहुंचने पर मान सिंह को पता चला कि जैसोल राज्य में तिजौरी देवी की प्रतिमा है, जिसके कारण जैसोल नरेश कभी कोई युद्ध नहीं हारा | तब मान सिंह ने मंदिर के पुजारियों को प्रलोभन देकर उस प्रतिमा को वहां से हटवाया और युद्ध करके जयसवाल पर विजय प्राप्त की | यह ईश्वरी देवी की प्रतिमा को मान सिंह अपने साथ जयपुर ले आए जो आज भी जयपुर के आमेर किले में शिला देवी के नाम से पूजी जाती हैं | युद्ध जीतने के बाद मान सिंह ने सन 1590 में गोविंद देव जी के इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया | और 1669 में औरंगजेब के आक्रमण के बाद यह मंदिर लगभग दो सौ वर्षो तक खंडहर के रूप में रहा इसीलिए इस मंदिर को भूतों वाला मंदिर कहा जाता है |
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गोविन्द देव मंदिर पर औरंगजेब का आक्रमण
यह मंदिर अपने समय का भक्ति और वास्तुकला का एक आकर्षक नमूना रहा है | गोविन्द देव मंदिर को जयपुर के राजा मान सिंह ने बनवाया था | उस समय यहाँ औरंगजेब का शाशन हुआ करता था |
कहा जाता है की पहले इस मंदिर में 7 मंजिलें होती थीं, किंतु औरंगजेब के शाही आदेश ने इस मंदिर के उपर की 4 मंजिल तुडवा दीं | टूटने से पहले इस मंदिर में सबसे उपर एक 50 किलो के तेल का दिया भी जलता था, जिसकी रौशनी आगरा तक पहुंचती थी | जब जब औरंगजेब दिल्ली से आगरा आता था, तब राजा मान सिंह को उसका स्वागत करने जाना पढ़ता था | राजा मान सिंह तब औरंगजेब के साथ ही थे जब उसने गोविन्द देव मंदिर को तोड़ने का आधेश दिया | यह सुन कर राजा मान सिंह तुरंत औरंगजेब की सेना से पहले यहाँ आ गये और गोविन्द देव मंदिर के विग्रह को राजस्थान भिजवा दिया | आज भी हवा महल की ठीक पीछे गोविन्द देव जी का मंदिर है | उसके बाद औरंगजेब की सेना ने मंदिर के गर्भ गृह को बारूद से उड़ा दिया |
कहा जाता है की कृष्ण जन्मभूमि पर जिस मस्जिद का निर्माण हुआ उमसे इस मंदिर से भी पत्थर ले जा कर उपयोग में लाये गये थे |
आज इस मंदिर में श्रद्धालु बहुत बड़ी संख्या में आकर गोविन्द देव जी के दर्शन प्राप्त करते हैं |