Radha Sneh Bihari Mandir – श्री कृष्ण ने स्वप्न में आकर काली गाये खोजने को कहा

Radha Sneh Bihari Mandir

बांके बिहारी, भगवान श्री कृष्ण के 108 नामों में एक है | अन्य नाम और हजारों स्वरूपों में एक अन्य स्वरूप है। अगर आप श्री कृष्ण के जीवन में गौर करें, तो यही पाएंगे कि प्रभु अपने पूरे जीवनकाल में कभी भी किसी स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं रहे । फिर चाहे वो गोकुल हो, मथुरा हो, द्वारका हो या हस्तिनापुर। श्री कृष्ण के इसी स्वभाव को दर्शाता है, वृंदावन की पवित्र भूमि पर स्थित श्री राधा स्नेह बांके बिहारी जी मंदिर। तो आइए भारत के इस प्राचीन और श्री कृष्ण के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक, श्री राधा स्नेह बिहारी जी मंदिर के दैवीय भ्रमण पर चलते हैं।

दर्शन का समय

प्रात: – 4:30 AM – 11:00 AM
सायं – 4:00 PM – 9:00 PM

मेरो वृन्दावन एंट्री पॉइंट से दुरी – 7.1 KM

वास्तुकला और निर्माणशैली

श्री राधा स्नेह बांके बिहारी जी मंदिर, अपनी वास्तुकला के लिए व्यापक रूप से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मंदिर की वास्तुकला एक पारंपरिक राजस्थानी शैली को दर्शाती है। बांके बिहारी मंदिर वृंदावन शहर में ठाकुर जी के मुख्य सात मंदिरों में से एक है। जहां त्रिभंग मुद्रा में भगवान कृष्ण की एक छवि है। जिसके बारे में कहा जाता है कि, इस पवित्र मूर्ति की पूजा एक बार स्वामी हरिदास जी ने की थी। जो प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरु थे।

बांके बिहारी नाम में, बांके शब्द का अर्थ है ‘तीन कोणों पर मुड़ा हुआ’ और बिहारी का अर्थ है ‘सर्वोच्च आनंद लेने वाला’ होता है। जिसकी झलक मंदिर में स्थित श्री कृष्ण की मूर्ति में देखने को मिलती है। जहां जहां बांसुरी बजाते हुए उनका दाहिना घुटना, बाएं घुटने पर मुड़ा हुआ है और उनके दाहिने हाथ में बांसुरी है। 

मंदिर का इतिहास – Shree Radha Sneh Bihari Mandir History

वृंदावन में आज से करीब 250 साल पहले, स्नेहीलाल गोस्वामी नामक एक बहुत बड़े कृष्ण भक्त हुआ करते थे। जिन्होंने एक बार प्रभु से उन्ही के जैसे बच्चे की कामना की। उसी रात भगवान कृष्ण ने उसकी इच्छा पूरी करने के लिए, उसके सपने में आकर उन्हे एक गोशाला में एक काले रंग की गाय खोजने के लिए कहा | कुछ समय बाद स्नेहीलाल गोस्वामी जी ने वो गाय खोज भी ली।

जब उन्होंने उस स्थान पर खुदाई कारवाई, तो वहाँ से श्री कृष्ण के बांके बिहारी स्वरूप की मूर्ति मिली और उन्होंने वहाँ एक छोटा सा मंदिर बनाकर उस प्रतिमा को वहीं स्थापित कर दिया। स्नेहीलाल गोस्वामी जी के बाद, श्री गिरिधरलाल गोस्वामी जी और उनके बाद श्री मूल बिहारी जी ने इस मंदिर की जिम्मेदारी संभाली। वहीं श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी के नेतृत्व में, 4 मई 2003 को श्री राधा स्नेह बांके बिहारी जी मंदिर को बड़ा आकार दिया गया।

मंदिर की विशेषता

श्री राधा स्नेह बांके बिहारी जी मंदिर में झांकी का बड़ा विशेष महत्व होता है। जहां झांकी के माध्यम से, भक्तों को बांके बिहारी जी के दर्शन कराए जाते हैं। इस शुभ झांकी का आयोजन वैशाख मास की अक्षय तृतीया के दिन होता है। इसके अलावा श्री बिहारी जी मन्दिर के सामने के दरवाजे पर, एक पर्दा लगा रहता है, जो हर एक-दो मिनट के अंतराल पर बन्द किया और खोला जाता है। जिसके बारे में बहुत सारी अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं। जो मंदिर के पुजारियों द्वारा हमेशा सुनने को मिलती रहती है।

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