जब बात श्री कृष्ण की ब्रज भूमि वृन्दावन की हो तो लीला होना तो स्वाभाविक है | यह भूमि अनगिनत चमत्कारों आयर लीला स्थलों से भरी पड़ी है | उन्ही स्थानों में से एक है श्री राधा रमण मंदिर | यह मंदिर कईं चमत्कारों का स्थान है और जहां आज बी भक्तों को हमारे कृष्ण की लीलाएं देखने को मिलती हैं | भक्त कहते हैं की इस मंदिर में पिछले 450 सालों से माचिस का उपयोग का उपयोग नही हुआ हैं | और इस मंदिर की प्रतिमा अपने आप प्रकट हुई थी |
तो चलिए आज जानते हैं श्री राधा रमण मंदिर के बारे में |
विषय सूचि
दर्शन का समय
प्रात:- 09:00 AM – 12:00 Noon
सायं – 05:30 PM – 09:00 PM
मेरो वृन्दावन एंट्री पॉइंट से दुरी – 8.5 KM
श्री राधा रमण जी मंदिर इतिहास (History)
करीब 500 साल पहले, श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट गोस्वामी जी यहाँ रहते थे | जब वे नेपाल गये तो गंडकी नदी में स्नान करते समय उन्हें वहां 12 शालिग्राम पत्थर मिले | जिन्हें गोपाल भट्ट गोस्वामी जी अपने साथ ले आये | गोपाल भट्ट जी नित्य ही उन शालिग्रामों का पूजन किया करते थे उसके बाद निचे टोकरी के नीचे रख दिया करते थे |
फिर एक दिन, वृंदावन में एक व्यापारी सभी मंदिरों की प्रतिमाओं के लिए पोशाक लेकर आए थे | सभी मंदिरों में पोशाक देने के बाद वह व्यापारी गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के पास भी पोषक देने आए | पर गोस्वामी जी पोषक देख कर सोचते हैं की यह पोषक किस तरह से कृष्ण के काम आ सकती है | इस दुविधा में ही उन्होंने पोषक कान्हा के पास रख दी और बोले की कान्हा जी कोई व्यापरी इस पोषक को आप के लिए लाया है, अब आप ही बताएं की आप इसका कैसे उपयोग करेंगे | यह कह कर गोस्वामी जी सो गये | इसके बाद सुबह जब स्वामी जी ने टोकरी हटाई तो वे देखते हैं की उनमें से एक शालिग्राम भगवान श्रीकृष्ण की त्रिभंग प्रतिमा में बदल चुका था |
श्री राधारमण जी के विग्रह में विशेषता यह है, की इसके मुख से गोविंद देव जी, वक्ष स्थल श्री गोपीनाथजी के समान और चरण कमल श्री मदन मोहन जी के समान है | इसलिए इस प्रतिमा में तीनों के दर्शनों का फल मिलता है | शेष बचे 11 सालिगराम आज भी गोपाल भट्ट स्वामी जी की समाधि के पास रखे हुए हैं
श्री राधा रमण जी में जन्माष्टमी का त्यौहार
इस मंदिर में त्यौहार बढ़ी धूम धाम से मनाये जाते हैं | भक्तों को बता दें की इस मंदिर में जन्माष्टमी दिन में ही मनाई जाती है | क्योंकि यहां ठाकुर जी के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है, इसलिए इस मंदिर में जन्माष्टमी रात के बजाय दिन में मनाई जाती है जिससे बच्चे के रूप में विराजमान ठाकुरजी को रात में न जगना पड़े | जिन मंदिरों में श्रीकृष्ण जी के बाल रूप की सेवा की जाती है उन मंदिरों में जन्माष्टमी रात के बजाय दिन में मनाई जाती है | उस दिन बड़े हर्षौल्लास के साथ राधा रमण लाल जी के अभिषेक में 21 मन दूध-दही बूरा ग्रस्त औषधियों और महाऔषधियों से अभिषेक किया जाता है | इसलिए इस कार्यक्रम में लगभग 3 घंटे लगते हैं |
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475 सालों से जल रही है गोस्वामी जी की अखंड अग्नि
इस मंदिर की एक और विशष्ट है जो इसे काफी अलग बनती है | जब राधा रमण जी प्रकट हुए तब गोस्वामी जी ने उन्हें भोग लगाने के लिए अपनी मंत्रोशक्ति के द्वारा एक अग्नि प्रज्वलित की | और वही अग्नि आज भी वैसे ही जल रही है | यह 24 घंटे ऐसे ही जलती रहती है और राधा रमण जी का भोग आज भी इसी भट्टी की अग्नि में तईयार होता है |
श्री गोपालभट्ट गोस्वामी जी समाधि स्थल
भक्तों को बता दें की गोस्वामी जी की समाधि आज भी वही हैं जहां उन्हें श्री राधा रमण जी ने प्रकट हो कर दर्शन दिए थे | निचे आप गोपालभट्ट गोस्वामी जी की समाधि की तस्वीर देख सकते हैं |