Narkasur Vadh – इसलिए मनायी जाती है छोटी दिवाली

Narkasur Vadh

नरकासुर (Narkasur) एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जो प्रागज्योतिषपुर यानि आज के आधुनिक असम का राजा था। वह भगवान विष्णु के वराह अवतार और देवी पृथ्वी के पुत्र के रूप में जाना जाता था। प्रारंभ में नरकासुर एक साधारण व्यक्ति था, लेकिन जैसे-जैसे उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया वैसे-वैसे उसमें अहंकार बढ़ता गया। माना जाता है कि नरकासुर ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके हजारों देवियों और देवताओं को कैद में डाल रखा था और पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था।

नरकासुर ने कई राज्यों पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया और उसके आतंक से सभी लोग त्रस्त हो गए थे। नरकासुर का सबसे बड़ा पाप यह था कि उसने देवताओं से संबंधित कई अमूल्य वस्तुओं को भी चुरा लिया था। इन वस्तुओं में से प्रमुख इन्द्र का पारिजात वृक्ष और उनकी माता के कुंडल थे। नरकासुर ने 16,100 कन्याओं का अपहरण कर उन्हें अपने महल में बंदी बना रखा था, जिन्हें वह अपने दरबार में शामिल करना चाहता था। इस प्रकार उसकी गतिविधियाँ और अत्याचार एक देव-प्रदत्त विनाश की आवश्यकता की ओर इशारा कर रहे थे।

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श्री कृष्ण और नरकासुर में क्या शत्रुता थी?

श्री कृष्ण और नरकासुर के बीच शत्रुता का आरंभ तब हुआ जब नरकासुर के अत्याचारों ने सारी सीमाएँ लांघ दीं। जिसके बाद देवताओं ने स्वयं भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि नरकासुर का वध करके पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त किया जाए। देवताओं के राजा इन्द्र को भी नरकासुर के आतंक का सामना करना पड़ा था, क्योंकि नरकासुर ने उनके अमूल्य पारिजात वृक्ष और अन्य संपत्तियों को चुरा लिया था। इसके अलावा नरकासुर ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए कई राजाओं और धार्मिक स्थलों पर भी आक्रमण किए। श्री कृष्ण का यह कर्तव्य बन गया कि वे नरकासुर के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाएं। इस कारण से श्री कृष्ण ने नरकासुर का अंत करने का संकल्प लिया। इस प्रयास में भगवान कृष्ण के साथ देवी सत्यभामा भी गईं, जो स्वयं देवी पृथ्वी का अवतार थीं और नरकासुर के कर्मों का निर्णय करना चाहती थीं।

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श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध कैसे किया? Narkasur Vadh

श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ प्रागज्योतिषपुर पर आक्रमण किया, जो कि नरकासुर का मुख्य दुर्ग था। इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए चारों ओर महाबलशाली रक्षक तैनात थे और उसके चारों ओर कई जादुई शक्तियों से घिरी हुई सुरक्षा व्यवस्था थी। श्री कृष्ण ने अपनी शक्ति और युद्धकला से इन सुरक्षा कवचों को ध्वस्त कर दिया। दुर्ग में प्रवेश के बाद, श्री कृष्ण का सामना नरकासुर की विशाल सेना से हुआ। कृष्ण को देख, नरकासुर ने अपने सेनापति मुरा को युद्ध के लिए भेजा। कृष्ण के एक ही वार से मुरा समेत तमाम सैनिक मारे गए। जिसके बाद क्रोधित नरकासुर महल से निकला और उसने अपने त्रिशूल से कृष्ण पर प्रहार किया जो उनके सीने पर लगा।

कृष्ण अचेतावस्था में युद्ध के मैदान पर गिर गए। कृष्ण की हालत देख, विचलित सत्यभामा ने नरकासुर पर बाण से प्रहार किया और नरकासुर मारा गया। सत्यभामा फिर कृष्ण की ओर मुड़ीं और कृष्ण मुस्कुराते हुए खड़े हो गए, क्योंकि यह उनकी लीला थी।

वास्तव में नरकासुर को ब्रह्मदेव का वरदान था कि उसे कोई देवता नहीं मार सकते और वो पृथ्वी देवी के हाथों मारा जाएगा। श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा पृथ्वी देवी का अवतार थीं और यही कारण है कि,श्री कृष्ण ने नरकासुर के वध के लिए सत्यभामा की सहायता ली। जिसके वध के लिए स्वयं देवराज इन्द्र ने श्री कृष्ण से अनुरोध किया था। क्योंकि नरकासुर ने इन्द्र की माता के कुंडल और पारिजात वृक्ष चुरा लिए थे। जो नरकासुर के वध (Narkasur Vadh) के बाद उन्हे वापस मिल गर,लेकिन इन्द्र ने पारिजात वृक्ष श्री कृष्ण को उपहार में दे दिया।नरकासुर के वध की इसी खुशी में नर्क चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। 

नरकासुर  और नर्क चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है। असल में यह नरकासुर की ही इच्छा थी की यह चतुर्दशी उसकी बुराइयों के अंत होने की वजह से एक उत्सव की रूप में मनाई जाए। इसीलिए दीवाली को नरक चतुदर्शी के रूप में भी मनाया जाता है। नरक एक बहुत अच्छे परिवार से था।

कहा जाता है कि वह भगवान विष्णु का पुत्र था। विष्णु जी ने जब जंगली शूकर यानी वराह अवतार लिया, तब नरक उनके पुत्र के रूप में पैदा हुआ। इसलिए उसमें कुछ खास तरह की दुष्‍ट प्रवृत्तियां थीं। सबसे बड़ी बात कि नरक की दोस्ती मुरा असुर से हो गई, जो बाद में उसका सेनापति बना। दोनों ने साथ मिल कर कई युद्ध लड़े और हजारों को मारा। कृष्ण ने पहले मुरा को मारा। मुरा को मारने के बाद ही कृष्ण का नाम मुरारी हुआ।

कहा जाता है कि मुरा के पास कुछ ऐसी जादुई शक्तियां थीं, जिनकी वजह से कोई भी व्यक्ति उसके सामने युद्ध में नहीं ठहर सकता था। एक बार मुरा खत्म हो गया तो नरक से निपटना आसान था। इस प्रकार, भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाई और अधर्म को समाप्त कर न्याय की स्थापना की।नरकासुर के वध का यह रूप महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से यह संदेश दिया गया कि,अधर्म की समाप्ति अवश्य होती है चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो?