मदन मोहन मंदिर (Madan Mohan Mandir) – कैसे मिली 5000 वर्ष पुरानी प्रतिमा

Madan Mohan Mandir

वृन्दावन का मन्दं मोहन मंदिर सदियों से ही कृष्ण भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है | जैसे की श्री कृष्ण अपनी लीलाओं के लिए जाने जाता हैं, वैसे ही मदन मोहन मंदिर भी उनकी अनंत लीलाओं में से एक का प्रमाण है | आज यह मंदिर वृन्दावन के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है |

Madan Mohan Mandir Darshan Timings

Morning Time07:00AM – 12:00Noon
Evening Time04:00PM – 09:00PM

मदन मोहन मंदिर का इतिहास (Madan Mohan Mandir History)

इस मंदिर की प्रतिमा का निर्माण श्री कृष्ण जी के प्रपौत्र, वज्रनाभ द्वारा करवाया गया था | समय बीतने के साथ इस मन्दिर की प्रतिमा खो गयी | फिर 15वीं शताब्दी में कहीं अद्वैत आचार्य जी ने मदन मोहन की मूर्ति की खोज एक पुराने बरगद के पेड़ के आधार पर की | उन्होंने मदन मोहन की पूजा का जिम्मा अपने शिष्य पुरूषोत्तम चौबे को सौंपा |

चौबे जी की पत्नी मदन मोहन जी की इस प्रतिमा की सेवा किया करती थी | उस समय वृंदावन एक घना जंगल हुआ करता था, जो तीन तरफ से यमुना नदी से घिरा हुआ था | इसके बाद पुरषोत्तम चौबे की पत्नी ने वृधावस्था में मदन मोहन के विग्रह को श्री चैतन्य महाप्रभु के एक शिष्य सनातन गोस्वामी जी को दे दी | वे उस समय अपनी कुटिया बनाकर रहते थे | सनातन गोस्वामी जी रोज भिक्षा के लिए मथुरा जाते थे | सनातन गोस्वामी जी अपनी कुटिया में रह कर मदन मोहन जी की सेवा करने लगे |

राम दास खत्री और कपूरी नाम के 2 व्यापारी दिल्ली से मथुरा और आगरा व्यापार करने के लिए आते थे | एक बार माल से लदी हुई उनकी नाव इसी टीले के पास यमुना नदी के किनारे फस गई | तीन दिन तक काफी प्रयास करने के बाद भी वह नाव नहीं निकली | चारों तरफ जंगल था कहीं से कोई मदद की उम्मीद नहीं थी |

तब व्यापारी ने इस टीले पर एक धुआं उठते देखा जो कि सनातन गोस्वामी जी की रसोई से आ रहा था | व्यापारी इस टीले पर सनातन गोस्वामी जी से मिला और सनातन गोस्वामी जी के कहने पर व्यापारी ने मदन मोहन जी से नाव को निकलने की विनती की | इसके बाद यहां बारिश हुई और किनारे पर फंसी हुई उसकी नाव नदी में तैरने लगी | यह देख व्यापारी ने प्रण लिया कि इस माल की बिक्री से जो भी धनराशि प्राप्त होगी, उसे वह मदन मोहन जी के मंदिर निर्माण कार्य में लगाएगा |

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मदन मोहन मंदिर वास्तुकला (Architecture)

श्री मदन मोहन मंदिर नागरा शैली में लाल बलुआ पत्थर से अंडाकार आकार बनाया गया है। यह मंदिर 20 मीटर ऊंचा है और यमुना नदी के पास स्थित है।

मुग़ल शासक औरंगजेब की तबाही 

जब मुगल शासक औरंगजेब गद्दी पर बैठा तो उसने सनातन को मिताने के लिए मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया | उससे बचने के लिए मदन मोहन मंदिर के पुजारियों ने मदन मोहन की असली प्रतिमा को राजस्थान में स्थानांतरित कर दिया | आज वृन्दावन में जो प्रतिमा हम पूजते हैं बह उसी का एक नकल है |

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