लट्ठमार होली (Lathmar Holi) भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय और जीवंत त्योहार है, जिसे होली के त्योहार का एक विशेष रूप माना जाता है। यह परंपरा उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में निभाई जाती है और इसे अनूठी लोक परंपराओं में से एक माना जाता है।
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क्या है लठमार होली?
इस होली में महिलाएं लाठी यानि लकड़ी की छड़ी का इस्तेमाल करती हैं और पुरुषों को मरती हैं | पुरुष ढाल लेकर खुद को बचाते हैं। ‘लट्ठमार’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है लाठी से मारना।

यह परंपरा भगवान कृष्ण और राधा की बाल-लीलाओं से जुड़ी हुई है। लोककथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ राधा और उनकी सखियों से होली खेलने बरसाना पहुंचते थे। राधा और उनकी सखियां मस्ती के दौरान लाठियों से कृष्ण और उनके सखाओं को मारती थीं। इसी लीलात्मक खेल ने लट्ठमार होली का रूप लिया। लट्ठमार होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं है। बल्कि इसमें गीत, नृत्य, और मस्ती का संगम होता है। महिलाएं होली के गीत गाती हैं और लाठी से खेलती हैं, जबकि पुरुष ढाल से खुद को बचाते हैं। इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग बड़ी संख्या में आते हैं।
कहां खेली जाती है? Where is it Celebrated?

लट्ठमार होली मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है। बरसाना, राधारानी का जन्मस्थान है जबकि नंदगांव, श्रीकृष्ण का। इन दोनों स्थानों की होली की परंपराएं एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। बरसाना में लट्ठमार होली एक विशेष दिन खेली जाती है, जिसे ‘बरसाना होली’ कहा जाता है। इस दिन, नंदगांव के पुरुषों का एक समूह ‘ग्वाल’ के रूप में बरसाना पहुंचता है और महिलाओं यानि राधा की सखियों के साथ होली खेलता है। महिलाएं लाठियों से इन पुरुषों पर हमला करती हैं और पुरुष खुद को ढाल से बचाने का प्रयास करते हैं।
बरसाने की लठमार होली के कुछ दृश्य आप इस विडियो में देख सकते हैं |
अगले दिन नंदगांव में भी इसी प्रकार की होली खेली जाती है, जहां बरसाना की महिलाएं नंदगांव जाती हैं। यह अनूठी परंपरा दोनों गांवों के बीच सौहार्द्र और भाईचारे का प्रतीक है। लट्ठमार होली केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे गांव के लिए एक बड़े उत्सव का रूप ले लेती है। यह परंपरा पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आकर्षण है। स्थानीय लोग इसके आयोजन में उत्साह से भाग लेते हैं, जबकि इसे देखने के लिए लाखों लोग यहां इकट्ठा होते हैं।
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इतिहास – History of Lathmar Holi

लट्ठमार होली का इतिहास भगवान कृष्ण और राधा की लीलाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण और उनके मित्र नंदगांव से बरसाना जाते थे और वहां राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेलते थे। राधा और उनकी सखियां, मस्ती और शरारत में कृष्ण और उनके मित्रों को लाठियों से दौड़ाती थीं। ऐतिहासिक रूप से यह परंपरा ब्रज क्षेत्र की अनूठी सांस्कृतिक धरोहर मानी जाती है। इसे न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्व दिया गया है। इसके माध्यम से ब्रज के लोग भगवान कृष्ण और राधा की अमर प्रेम कथा और उनकी बाल-लीलाओं को जीवंत करते हैं। ब्रज की लट्ठमार होली का उल्लेख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और कविताओं में भी मिलता है। चैतन्य महाप्रभु और अन्य भक्त कवियों ने भी इस लट्ठमार होली की अद्वितीयता का वर्णन किया है।
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क्यों प्रसिद्ध है बरसाना की लट्ठमार होली?
बरसाना की लट्ठमार होली न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन के लिहाज से भी अत्यंत प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु और पर्यटक हर साल यहां आते हैं। इसके प्रसिद्ध होने का सबसे बड़ा कारण इसका धार्मिक महत्व है। राधा और कृष्ण की प्रेम-लीलाओं की स्मृति में यह त्योहार मनाया जाता है। इसके अलावा, यह त्योहार ब्रज की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और लोकगीतों का जीवंत उदाहरण है। बरसाना की लट्ठमार होली में महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं और पुरुष धोती-कुर्ता में सजते हैं। यह त्योहार ब्रज की परंपराओं और रीति-रिवाजों का उत्सव है। जिसमें रंग, संगीत और नृत्य का सम्मिलन होता है। पर्यटन के दृष्टिकोण से भी यह उत्सव बेहद महत्वपूर्ण है। होली के समय बरसाना में एक मेले का आयोजन किया जाता है। जहां स्थानीय हस्तशिल्प, भोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र होते हैं।
लट्ठमार होली भारतीय संस्कृति का एक अनूठा पर्व है। जो केवल रंगों और मस्ती का नहीं, बल्कि प्रेम, सौहार्द्र और परंपरा का भी प्रतीक है। बरसाना और नंदगांव में खेली जाने वाली यह होली भगवान कृष्ण और राधा की बाल-लीलाओं की स्मृति को जीवंत करती है। यह त्योहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि भारत की जीवंत परंपराओं को भी दर्शाता है।