लाला बाबु मंदिर (Lala Babu Mandir) – यहाँ जीवित प्रतिमाओं की होती है पूजा |

Lala Babu Mandir

राधे राधे मित्रों !!! जैसा की हम सब जानते हैं की भगवान श्री कृष्ण के अनगिनत संख्या में भक्त हैं | उन्ही में से कुछ भक्त ऐसे भी हुए हैं जो की बहुत प्रसिद्ध हुए | जैसे चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिवंश जी, गोपाल भट गोस्वामी जी, आदि | उन्ही में से एक कृष्ण भक्त हैं लाला बाबु | श्री लाला बाबू कृष्ण जी के अनन्य भक्त थे और उन्ही की इच्छा अनुसार श्री लाला बाबू जी को उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पैरों को बांधकर वृंदावन धाम की यात्रा करवाई गई | इन्ही लाला बाबु को समर्पित वृन्दावन के गोदा विहार में भव्य मंदिर भी स्थित है | यह मंदिर व्रोंदावं के 2 प्रमुख मंदिरों यानि रंगजी मंदिर और गोपेश्वर महादेव मंदिर के बीच में स्थित है |

दर्शन करने का समय

प्रात: – 7 AM –12:30 PM
सायं : 5 AM –9 PM

मेरो वृन्दावन एंट्री पॉइंट से दुरी – 9 KM

मंदिर की वास्तुकला और निर्माणशैली 

इस मंदिर का निर्माण बंगाली कायस्थ वर्ण के श्री कृष्ण चंद्र सिंह उर्फ लाला बाबू ने 1810 में करवाया था | उस समय मंदिर के निर्माण में 2500000 रुपए की लागत आई थी | 22 बीघा भूमि पर बने मंदिर जिसमें एक बगीचा है और चारों ओर ऊंची-ऊंची प्राचीरें (दीवारें) हैं | इस के मुख्य द्वार पर ही लाला बाबु जी का समाधि स्थल देखने को मिलता है | जिसके बाद भव्य मंदिर की इमारत दिखती है | इस इमारत की दीवारों पर श्री नरसिंह भगवान की प्रतिमा बनी हुई है | मंदिर में एक घंटा है जो की हर घंटे के बीतने पर बजाय जाता है |

लाला बाबु मंदिर इतिहास – Lala Babu Mandir History

श्री लाला बाबू का जन्म 1725 इस बीच में बंगाल के एक धनाड्य परिवार में हुआ था इनका नाम श्री कृष्ण चंद सिंह रखा गया | समय आने पर इनका विवाह हुआ और एक पुत्र की प्राप्ति हुई | श्री विपिन चंद्र प्रतिदिन अपनी पालिकाओं में बैठकर गंगा दर्शन को जाया करते थे | बंगाल में रजक लोग केले के छिलके में आग लगा कर उसकी राख से कपड़े साफ करते थे | बता दें की बंगाल में केले के छिलके को वासना कहा जाता है | एक दिन जब लाला बाबू गंगा दर्शन करने आए तो गंगा घाट पर एक रजक अपनी छोटी सी बिटिया के साथ कपड़े धो रहा था | तभी लाला बाबु उस रजक की बिटिया को बोलते सुनते हैं की ‘पिताजी समय बीत रहा है वासना में आग लगा दो’ | यहां वासना का तात्पर्य केले के छिलके से ही था | 

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किंतु जब लाला बाबु को बालिका का कथन सुनाई दिया, तब वे उसका अर्थ समझ जाते हैं किंतु अचानक ही उनका ध्यान इस बात में कही गयी शारीरक वासना के तात्पर्य के रूप में जाता है | वे सोचते हैं की बालिका सही ही तो कह रही है | मेरे पास भी अब समय नहीं बचा है ,आयु बीती जा रही है | अब मुझे भी अपने काम और वासना को आग लगा देनी चाहिए और शरीर के रहते श्री कृष्ण के प्रेम की प्राप्ति कर लेनी चाहिए | श्री लाला बाबु ने उस बालिका को गुरु तुल्य माना और बालिका को दक्षिणा देकर उसी समय आभूषण और वस्त्र त्याग दिये | और जो धोती पहनी थी, उसी में ही वृंदावन धाम आ गए | यहां आकर लाला बाबू ने पूर्ण व्रत रहकर निरंतर भोजन किया और समय आने पर गोवर्धन के संत श्री कृष्ण दास जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की |

एक बार श्री लाला बाबू को यह पता चला कि नगर सेठ और राज्य के अधिकारी मिलकर वृंदावन की भूमि की नीलामी कर रहे हैं | यह सुन लाला बाबू भी कचहरी पहुंच गए उनकी साधू वेश को देखकर कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाया | जहां लोगों की जूते-चप्पल उतारे हुए थे, वहीं लाला बाबू चुपचाप जाकर बैठ गए | बोली प्रारंभ होने पर लाला बाबू ने सबसे ऊंची बोली लगाई और वृंदावन की भूमि अपने नाम करव ली | बाद में अपनी जमींदारी कार्यालय से उचित धनराशि मंगवाकर अधिकारियों को सौंप दी | इन्होंने 21 बीघा भूमि अलग से मंदिर निर्माण के लिए रख ली | 

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फिर एक दिन श्री लाबु विचार करने लगे कि इतने दिन हो गए भजन करते-करते लेकिन भगवान के दर्शन नहीं हुए | तो सहसा ही इनके मन में विचार आया कि हो ना हो कहीं ना कहीं मेरे मन में अभी भी मान-सम्मान धन संपत्ति और अहंकार विद्यमान हैं | लालाबाबू अगले ही दिन भिक्षा को निकल लिए और सांसारिक मोह माया को हमेशा के लिए त्याग दिया | सांसारिक जीवन से विरक्त होकर श्री कृष्ण जी की भक्ति करते रहे इसी तरह समय निकलता रहा एक दिन श्री लाला बाबू को श्रीकृष्ण राधा रानी और उनकी ललिता सखी के दर्शन हुए और फिर तीनों ही अदृश्य हो गई | अब श्री लाला बाबू ने निश्चय किया कि वह अपने मंदिर में इन्हीं रूपों के विग्रह की स्थापना करेंगे |

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मंदिर के लिए जयपुर के महाराज के द्वारा वहां से पत्थर मंगवाये गए | जब मंदिर पूरा हो गया और श्री विग्रह की स्थापना हो गई, तब काशी और गया से विशेष पंडितों को बुलाया गया | श्री लाला बाबू की यह प्रतिज्ञा थी, कि जब तक मूर्ति में प्राण का प्रमाण नहीं मिलेगा तब तक प्रतिष्ठा पूरी नहीं मानी जाएगी | सभी पंडितों ने लाला बाबू की यह शर्त मान ली और प्राण प्रतिष्ठा का कार्य प्रारंभ हुआ | सात दिन तक प्राण प्रतिष्ठा चलती रही लेकिन प्राणों की कोई संकेत नहीं मिले | सभी पंडित निराश हो गए | आठवें दिन श्री लाला बाबू विग्रह के सामने हाथ जोड़कर खड़े थे, तो लाला बाबू को मूर्ति में कंपन का अनुभव हुआ और कहा कि मूर्ति में प्राण आ चुके हैं | इस बात पर किसी को विश्वास नहीं हुआ इसलिए, अपनी बात को सत्य प्रमाणित करने के लिए श्री लाला बाबू ने बाजार से ताजा माखन मंगवाया और उस मार्किंग को मूर्तियों के मस्तक पर रख दिया | वह माखन तुरंत ही बैठकर मूर्तियों के मुंह पर बहने लगा यह पहला प्रमाण था इसके पश्चात प्रतिमाओं की नासिका के सामने थोड़ी सी रखी गई | 

वह रूई भगवान की सांस लेने से हिलने लगी यह दूसरा अभिमान था | इसके बाद पंडितों ने प्रतिमाओं की कलाई पर हाथ रखा तो उन्हें प्रतिमाओं की कलाई में स्पंदन महसूस हुए सभी को विश्वास हो गया कि प्रतिमा में प्रणाम चुके हैं | इसके बाद मंदिर जयकारों से गूंजने लगा | लाला बाबू की प्रतिज्ञा पूर्व हो चुकी थी | 

लाला बाबू ने अपने अंतिम समय में कहा कि मेरी मृत्यु के पश्चात मेरे नश्वर शरीर को श्री ब्रज धाम की रस में मिला दिया जाए | इस शरीर से न जाने कितने प्राणियों को कष्ट पहुंचा होगा | अतः इसे पवित्र करने के लिए मेरे शरीर के पैरों में रस्सी बांधकर श्रीवृंदावन धाम की परिक्रमा करवाई जाएगी | और शेष अब से मेरी खुली समाधि का निर्माण कराया जाए | उसे प्रकृति की गोद में खुला रखा जाए | लाला बाबू की मृत्यु के बाद ऐसा ही किया गया श्री गोवर्धन स्थित उनकी भजन स्थली पर उनकी खुली समाधि बनी हुई है | और कुछ अस्थियां अपशिष्ट वृंदावन में लाकर लाला बाबू मंदिर के बगल में उनकी समाधि बनाई गई है | लाला बाबू का यह मंदिर एक भक्त की भक्ति के प्रमाण के रूप में आज भी वृंदावन धाम में विद्यमान है |

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