रक्षाबंधन को लेकर प्राचीन कल के एक कथा प्रचलित है | यह कथा श्री कृष्णा और द्रौपदी की है | मान्यताओं के अनुसार रक्षा बंधन के त्योहार को द्रोपदी और श्री कृष्णा के संबंध को लेकर भी याद किया जाता है | श्री कृष्णा ने कई मौका पर द्रोपदी की रक्षा की थी | कहते हैं की दोनों ही अच्छे मित्र होने के साथ ही दोनों में भाई-बहन का रिश्ता भी था | जब सुदर्शन चक्र से भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनकी उंगली कट गई थी, जिससे रक्त बहाने लगा था | यह देख द्रोपती ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़ कर श्री कृष्णा की उंगली पर बाँधी दी | इस समय श्री कृष्णा ने द्रौपदी को अपनी बहन मान लिया और आजीवन उसकी रक्षा करने का वचन दिया |
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श्री कृष्णा ने द्रौपदी से कहा जीस समय भी वह स्वयं को संकट में महसूस करे तब वे उन्हें याद कर सकती है | फिर कुछ समय बाद जब पांडव इंद्रप्रस्थ हार गए | तब उन्होंने द्रोपती को भी दाव पर लगा दिया | इस करण दुशासन ने द्रोपती को उसके बाल सहित पकड़ा और भरी सभा में चीर हरण के लिए लाया गया | यह देख कर भी सभी मौन थे | वही पांडव भी द्रौपदी के लॉज बचा नहीं कर सके | तभी द्रोपदी ने वासुदेव श्री कृष्णा को आंखें बंद कर याद किया | उन्होंने श्री कृष्णा का आह्वान किया | उन्होंने कहा हे गोविंद, आज आस्था और अनास्था के बीच युद्ध है | मुझे देखना है की क्या सही में ईश्वर है ? द्रौपदी के लाज बचाने और उनकी राखी की लाज रखने के लिए श्री कृष्णा ने सभी के समक्ष एक चमत्कार किया | श्री कृष्णा ने चीर बढाकर इस बंधन का उपकार चुकाया | और द्रौपदी के साड़ी को इतना लंबा कर दिया की दुशासन खींचते खींचते थक हार कर गिर पड़ा |
उस सभा में मौजूद सभी लोग इस चमत्कार को देखकर हैरान रह गए | ये प्रसंग भी रक्षाबंधन के महत्व को प्रतिपादित करता है |