खाटू श्याम भगवान को कौन नही जानता | इन देवता को हारे का सहारा माना जाता है | हर वर्ष करोड़ों भक्त राजस्थान के सीकर में खाटू श्याम के दर्शन करने जाते हैं | किंतु यह सभी भक्तों को नही पता की यह वही हैं जिन्हें महाभारत के समय में बरबरिक के नाम से सम्बोधित किया जाता है |
जी हाँ, गदाधारी भीम के पोते, बर्बरीक ही आज खाटू श्याम के नाम से भारतवर्ष में पूजे जाते हैं | वे महाभारत काल के एक अद्भुत श्रेणी के योद्धा थे। जिनके पराक्रम, सूझबूझ और सत्यनिष्ठा को देखते हुए स्वयं श्री कृष्ण ने उन्हें अपना नाम ‘श्याम’ दिया। राजस्थान के सीकर जिले में शहर से तकरीबन 43 किमी दूरी पर स्थित खाटू गांव में, इनका एक भव्य मंदिर है । तो चलिए जानते हैं आखिर कैसे श्री कृष्ण की कृपा से बर्बरीक बने खाटू श्याम ?
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कौन थे बर्बरीक? Who was Barbarik?
भीमसेन और हिडिम्बा के पोते, घटोत्कच और अहिलावती मौरवी के पुत्र, बर्बरीक महाभारत का एक प्रमुख पात्र हैं ।बर्बरीक की गुरु उन्ही की दादी हिडिम्बा थीं । जिन्होंने बर्बरीक को बचपन से ही शस्त्र से लेकर शास्त्र तक की शिक्षा दी थी। देवी हिडिम्बा ने अपने पौत्र बर्बरीक को हमेशा लाचारों और हारे हुए लोगों की सहायता करने की शिक्षा दी
आगे चल कर जब बर्बरीक बड़े हुए तो, माता के आदेश पर उन्होंने वर्षों महादेव की तपस्या में व्यतीत कर दिए।जिनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने बर्बरीक को तीन ऐसे अचूक बाण दिए, जिसका एक बाण ही पूरी सेना को खत्म करने के लिए काफी था। यही नहीं बर्बरीक का एक बाण अनगिनत निशानों को साधता हुआ वापस तरकश में आ सकता था। अपनी इस शक्ति से बर्बरीक महाभारत के सर्वश्रेष्ठ योद्धा बन गए।
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बर्बरीक से खाटू श्याम बनने की कथा – Khatu Shyam History
महाभारत में बर्बरीक पांडवों से संबंध रखते थे और महाभारत की लड़ाई में विजय के लिए पांडव जी-जान से लड़ रहे थे। महाभारत के युद्ध में बर्बरीक के पिता घटोत्कच भी पांडवों की ओर से लड़ते हुए मारे गए थे। लेकिन इसके बावजूद अपनी माता से मिली शिक्षाओं के कारण, बर्बरीक ने प्रतिशोध को नहीं चुना और हमेशा हारे हुए लोगों को सहायता करते रहे। लेकिन जब उन्हें महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार का पता चला, तो बर्बरीक उनकी सहायता के लिए कुरुक्षेत्र की ओर निकल पड़े। जिनका एक बाण एक क्षण में पूरे युद्ध को समाप्त कर सकता था और कौरवों को जीता सकता था। लेकिन धर्म कौरवों के साथ नहीं था, इसलिए बर्बरीक को रोकने स्वयं श्री कृष्ण आए।
श्री कृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के पास गए और बर्बरीक से उनके बाणों का रहस्य पूछा। जब बर्बरीक ने सारी बात बताई, तो श्री कृष्ण ने उन्हें बाण चलाकर पास मौजूद पीपल के सभी पत्तों में छेद करने को कहा।जिसका एक पत्ता तोड़ कर श्री कृष्ण ने अपने पांव के नीचे रख लिया। लेकिन जब बर्बरीक ने बाण चलाया तो पीपल के हर पत्ते में छेद हो गया। यहां तक की श्री कृष्ण के पांव के नीचे पड़े उस पत्ते में भी छेद हो गया। जिसके बाद श्री कृष्ण ने सोचा कि, बर्बरीक तो एक क्षण में ही युद्ध के परिणाम को बदल देगा।
उसे रोकने के लिए श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सर धड से अलग कर दिया और उन्हें अपने साक्षात् रूप के दर्शन दिए | बर्बरीक ने खुशी खुशी उनकी बात मान ली और बिना किसी संकोच के, दानी रूप में अपना शीश दान कर दिया। बर्बरीक के इसी सत्यनिष्ठा को देखते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया की अब से बर्बरीक उनके स्वयं यानि की श्याम नाम से पूजे जायेंगे |
श्री खाटू श्याम मंदिर – Who made Khatu Shyam Mandir?
भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश दान करने के बाद बर्बरीक ने महाभारत का पूरा युद्ध देखने की इच्छा जताई।बर्बरीक की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे हुए शीश को एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, जिससे बर्बरीक ने पूरे युद्ध को देखा। एक पौराणिक कथा के अनुसार, युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को आशीर्वाद देते हुए रूपावती नदी में बहा दिया था।
माना जाता है कि कलयुग में बर्बरीक का शीश सीकर के खाटू गांव की धरती में दफन मिला। बर्बरीक का शीश मिलने के बाद खाटू गांव के राजा रूप सिंह को एक स्वप्न आया, जिसमें उन्हें मंदिर बनाकर वह शीश उसमें स्थापित करने का आदेश मिला और राजा ने ऐसा ही किया। इस प्रकार बर्बरीक अपने पराक्रम से भगवान बन गए। जिनके आज राजस्थान के सीकर जिले में स्थित उसी खाटू गांव में, खाटू श्याम के रूप में दर्शन होते हैं।