Keshav Rai Temple – 4 पीढ़ियों में बना था केशोरायपाटन का यह मंदिर

Keshav Rai Temple

राजस्थान के बूंदी जिले के केशोरायपाटन में चंबल नदी पर स्थित श्री केशवराय मंदिर (Keshav Rai Temple), भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अति प्राचीन काल से है। राजस्थान की विशाल सांस्कृतिक धरोहरों में से एक यह मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला और दिव्य मूर्तियों के लिए जाना जाता है। जहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की सुंदरता और आध्यात्मिकता एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है, जो सालों से भक्ति और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। तो आइए श्री केशवराय मंदिर के बारे में कुछ और रोचक बातें जानते हैं।

दर्शन का समय

प्रात: 04:00 AM से 12:00 Noon
सायं: 03:00PM से 10:00 PM

मंदिर की वास्तुकला – Architecture

केशोरायपाटन के प्रसिद्ध श्री केशवराय मंदिर (Keshav Rai Temple) की वास्तुकला राजस्थान की प्राचीन शिल्पकला का अनूठा उदाहरण है। मंदिर का निर्माण पूरी तरह से पत्थरों से किया गया है, जिसमें मध्यकालीन राजपूत वास्तुकला के प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। मंदिर का गर्भगृह छोटा है, लेकिन इसे अत्यंत खूबसूरती से नक्काशीदार स्तंभों और छत से सजाया गया है।

मंदिर की बाहरी दीवारों पर भी जटिल नक्काशियों का काम किया गया है, जिनमें विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं के चित्रण हैं। गर्भगृह के ऊपर एक सुंदर शिखर है, जो राजस्थान के पारंपरिक मंदिर शिखरों की शैली का अनुपालन करता है। यह शिखर मंदिर को एक धार्मिक ऊंचाई प्रदान करता है, जो दूर से ही भव्य दिखाई देता है। मंदिर के चारों ओर विस्तृत आंगन है, जहां श्रद्धालु पूजा और ध्यान करते हैं।

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मंदिर का इतिहास – Keshav Rai Temple History

श्री केशवराय मंदिर का निर्माण साल 1641 में बूंदी के राजा राव छत्रसाल ने करवाया था। जिनके पूर्वज की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु, यहां दो मूर्तियों के रूप में प्रकट हुए थे। जिनमें से एक मूर्ति सफेद पत्थर में श्री केशवजी की और दूसरी काले पत्थर में श्री चारभुजा नाथ की थी। जिन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया गया और मंदिर का निर्माण 4 पीड़ियों बाद राव छत्रसाल के समय पूरा हुआ। बाद में मुगलों के शासनकाल में इस मंदिर को नष्ट करने के कई प्रयास भी किए गए। लेकिन स्थानीय राजाओं और भक्तों के सहयोग से इसे बचा लिया गया।

मंदिर (Keshav Rai Temple) के पुनर्निर्माण का श्रेय उस समय के स्थानीय शासकों को दिया जाता है, जिन्होंने इसे सुरक्षित रखा और इसे आज भी भव्यता के साथ संरक्षित किया गया है। यह मंदिर भारतीय इतिहास की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अद्वितीय स्थान रखता है।

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मंदिर की मूर्तियां – Idol Description

श्री केशवराय मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की अत्यंत मनमोहक और विशाल मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है और भगवान श्रीकृष्ण को उनके बाल रूप में दर्शाती है। मूर्ति को बेहद सुंदर और आभूषणों से सुसज्जित किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ यहां राधारानी की भी मूर्ति स्थापित है, जो उनकी दिव्य प्रेम कथा को दर्शाती है। मंदिर में भगवान केशवरायजी की सफेद पत्थर की मूर्ति पद्मासन यानि कमल की मुद्रा में बैठी है। जिसके बाएं हाथ में चक्र और दाएं हाथ में शंख विराजमान है। वहीं प्रतिमा के मुख्य आकर्षण का केंद्र उसका जनेऊ है।

मंदिर के भीतर अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मौजूद हैं। जिनमें भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और अन्य वैष्णव देवी-देवताओं की मूर्तियां शामिल हैं। मंदिर में भगवान शिव की भी एक अत्यंत प्राचीन मूर्ति मौजूद है, जो उसी परिसर में दूसरे मंदिर में स्थित है। इसकी (Keshav Rai Temple) स्थापना स्वयं भगवान परशुराम जी ने, चंबल नदी के तट पर तपस्या के साथ की थी। श्री केशवराय मंदिर की मूर्तियों में नक्काशी और आभूषणों का विशेष महत्व है, जो राजस्थान के पारंपरिक शिल्पकला को दर्शाता है।

मंदिर की मान्यताएं व महत्व

श्री केशवराय मंदिर को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं अवश्य ही पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण के जन्माष्टमी महोत्सव के दौरान यहां भक्तों का तांता लगता है। मंदिर में भगवान श्रीकेशवराय जी की प्रसिद्ध प्रार्थना को केशवास्तक कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान श्री केशवराय जी के दर्शन से समस्त पापों का नाश होता है और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जो भक्त सच्चे दिल से यहां भगवान केशवराय की पूजा करते हैं उन्हें जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। धार्मिक दृष्टि से यह मंदिर न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

श्री केशवराय मंदिर की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित करती है, जहां हर वर्ष हजारों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा व्यक्त करने आते हैं।