दर्शन कीजिये कामवन स्थित चरण पहाड़ी, विमल कुंद और 84 खम्बा के

कामवन स्थित चरण पहाड़ी

सम्पूर्ण ब्रज मण्डल में कामवन भगवान श्री कृष्ण और उनकी लीलाओं को दर्शता है | यह वन मौजूद 12 वनों में सबसे बड़ा वन माना जाता है, जहां श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़े कई प्राचीन स्थान आज भी मौजूद हैं। तो आइए हम आपको कामवन की इसी प्राचीनता और यहाँ मौजूद सभी तीर्थ स्थलों से अवगत कराते हैं |

कहाँ है कामवन ?

कामवन वर्तमान में राजस्थान के भारतपुर जिले के अंतर्गत आता है जो मथुरा से 41 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। काम्यवन के नाम से भी जाना जाने वाला वन, ब्रज का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता है। ब्रज की परिक्रमा मार्ग में कामवन का अपना एक अलग महत्त्व है।

कामवन का इतिहास

कामवन में श्री कृष्ण ने अपना आधा बचपन बिताया था और कई लीलाएँ की थी। इस वन में श्री कृष्ण और बलराम बाल सखाओं के साथ गैया चराने आया करते थे। इसी वन में श्री कृष्ण बाल सखाओं के साथ खेलते थे और यहीं पर दोपहर का भोजन भी किया करते थे । इसी वन की एक पहाड़ी पर श्री कृष्ण ने एक राक्षस  का वध भी किया था। जहां आज भी श्री कृष्ण की लीलाओं के कई उल्लेख मिलते  हैं।

कामवन के सभी मंदिर

क्योंकि कामवन आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है, इसीलिए यहाँ अनेकों मंदिर हैं जो श्री कृष्ण के जीवन के बारे में हमें जानकारी दी हैं | उनमे से कुछ इस प्रकार हैं |

चरण पहाड़ी

चरण पहाड़ी वो स्थान है, जहां भगवान श्री कृष्ण  के द्वापर युग के चरण चिन्ह आज भी विद्यमान हैं । चरण पहाड़ी की लीला के अनुसार यहाँ श्री कृष्ण जी गाय चराते  थे और एक दिन श्री कृष्ण ने इस पहाड़ी पर खड़े होकर बंशी  की ऐसी  धुन बजाई, जिसे सुनकर पूरा पर्वत पिघलने लगा। वहीं श्री कृष्ण जहां खड़े थे,वहाँ उनके पैरों के निशान पहाड़ी पर अंकित हो गए ।

विमल कुंड

ये वही स्थान है जहां श्री कृष्ण ने ब्रज की 16,100 कन्याओं के साथ विवाह किया था। इस कुंड को श्री कृष्ण ने तीर्थराज की उपाधि दी थी। क्योंकि इस कुंड का निर्माण श्री कृष्ण ने अपने माता-पिता को तीर्थ स्नान करने के लिए करवाया था। कहते हैं कि, इस कुंड में स्नान करने से समस्त तीर्थों का स्नान करने के बराबर फल मिलता है ।

चौरासी खंबा

ये स्थान कामवन में मौजूद एक प्राचीन इमारत है। जिसके खंभों और दीवारों पर हिन्दू देवी देवताओ की कलाकृतियां बनी हुई हैं। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस भवन को स्वयं श्री विश्वकर्मा जी ने बनाया था और पाँडवों ने आज्ञातवास के दौरान यहाँ कुछ दिन बिताए थे। बाद में सुरसेन वंश की रानी ने यहाँ विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसके कुछ सालों बाद  मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे मस्जिद के रूप में बदलने की कोशिश की थी। इस भवन की एक टूटी हुई  दीवार पर उर्दू में कुछ  शब्द अंकित है।

भोजन थाली

यह स्थान कामवन की सबसे प्रमुख स्थानों में से एक है। यहीं श्री कृष्ण और बलराम गायें चराने के बाद भोजन किया करते थे। यहाँ उनके प्राचीन दही और माखन के कटोरे आज भी मौजूद हैं । इन सब दार्शनिक स्थानों के अलवा श्री कृष्ण ने कामवन में ही अपने माता-पिता के लिए चारों धामों का अहवाहन किया था। वहीं स्थानीय लोगों की माने तो यहां पर वही कुंड है, जिस कुंड के पास यक्ष ने युधिष्ठिर से परीक्षा ली थी।

अन्य विशेषताएं

कामवन में छोटे–बड़े असंख्य कुंड और तीर्थ मौजूद हैं। इस वन की परिक्रमा चौदह मील की है। विमलकुंड यहाँ का प्रसिद्ध तीर्थ या कुंड है। सर्वप्रथम इस विमलकुंड में स्नान कर,कामवन के कुंड अथवा कामवन  की दर्शनीय स्थलियों का दर्शन प्रारम्भ होता है। कामवन में विमलकुंड के साथ-साथ गोपिका कुंड, सुवर्णपुर गया कुंड और धर्म कुंड भी मौजूद है ।

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