वृंदावन में स्थित इमली तला मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी को समर्पित है। भक्तों के बीच यह मंदिर एक विशेष मान्यता रखता है। यहां की शांति और आध्यात्मिक वातावरण भक्तों को अद्वितीय अनुभव प्रदान करते हैं। तो आइए इसी अद्वितीय मंदिर का दिव्य भ्रमण करते हैं।
मान्यता है कि इस वृक्ष की पकी हुई इमली पर राधारानी जी का पैर पड़ने से उनकी मेहंदी खराब हो गई थी तभी से आज तक इस क्षेत्र में इमली के पेड़ों पर इमली तो लगती हैं, लेकिन पकती नहीं है | यह मन्दिर चीर घात के काफी समीप स्थित है |
मंदिर की स्थापत्य कला
इमली तला मंदिर की स्थापत्य कला अत्यंत सुंदर और मनमोहक है। यह मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। जिसमें बारीक नक्काशी और सुंदर मूर्तियों का समावेश है। मंदिर का मुख्य द्वार भव्य और अलंकृत है। जिसमें विभिन्न धार्मिक और पौराणिक कथाओं को दर्शाया गया है। मुख्य भवन संगमरमर और पत्थरों से निर्मित है। जो इसकी स्थायित्व और प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर के आंगन में हरे-भरे पेड़-पौधे और एक छोटा तालाब है। जो इसकी सुंदरता और शांति को बढ़ाता है । इसके साथ ही मंदिर की छत और दीवारों पर रंगीन चित्रकारी और नक्काशी की गई है। जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाती है।
मूर्तियों की बनावट –
इमली तला मंदिर में स्थापित मूर्तियाँ अत्यंत सुन्दर और आकर्षक हैं। मुख्य मूर्तियाँ भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की हैं, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। इन मूर्तियों की बनावट बारीकी से की गई है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की मुरली और राधारानी की मोहक मुद्रा को विशेष रूप से उभारा गया है। मूर्तियाँ संगमरमर से निर्मित हैं और उन पर स्वर्ण और रत्नों की सजावट की गई है, जो उनकी दिव्यता और आकर्षण को और बढ़ा देती है। इसके साथ ही मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की भी छोटी-छोटी मूर्तियाँ स्थापित हैं। जो इसकी धार्मिक विविधता को दर्शाती हैं।
मंदिर से जुड़ी कहानी और इतिहास –
आज के समय में इमली तला मंदिर वृन्कादावन के कुछ प्रमुख मंदिरों में एक है किंतु इसके इतिहास और इससे जुड़ी कहानियाँ अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक भी हैं। यह माना जाता है कि, इस मंदिर का नामकरण एक प्राचीन इमली के पेड़ के नाम पर हुआ। जिसके नीचे भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी ने विश्राम किया था। इस स्थल को उनके प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
एक अन्य प्रमुख कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में यहाँ राधारानी के साथ रासलीला रचाई थी। इस इमली के पेड़ के नीचे बैठकर उन्होंने अपनी मुरली की मधुर धुन से राधारानी और गोपियों को मंत्रमुग्ध किया था। यह स्थल उन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रेम की दिव्य कथा से प्रेरित होते हैं।
माना जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में एक छोटे से आश्रम के रूप में था, जहाँ संत और ऋषि तपस्या और साधना किया करते थे। यहाँ भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी अक्रूर घाट से यमुना तट पर इमली तला के नीचे बैठने के लिए रोज आया करते थे। आज इस वृक्ष के नीचे भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी की एक मूर्ति स्थापित है। कालांतर में इस स्थल की इसी महत्ता को देखते हुए यहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इसके निर्माण के पीछे कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण हैं। जो इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाते हैं। वर्तमान में यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहाँ वे भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने आते हैं।