Govardhan Parvat Story: क्यों इंद्र देव हुए गोकुल वासियों पर क्रोधित?

Govardhan Parvat Story

गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat), जिसे गिरीराज पर्वत भी कहा जाता है हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र स्थान है। यह उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस पर्वत को श्रद्धालु प्रकृति का सजीव रूप मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं।

क्यों प्रसिद्ध है गोवर्धन पर्वत? Why Govardhan Parvat is Famous?

गोवर्धन पर्वत का महत्व हिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों में गहराई से वर्णित है। इसे न केवल एक पवित्र स्थल माना जाता है, बल्कि यह भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से भी जुड़ा हुआ है।

पौराणिक महत्व – गोवर्धन पर्वत को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति का देवता बताया है। उन्होंने लोगों को सिखाया कि हमें प्रकृति की पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह हमारी सभी आवश्यकताओं को पूरा करती है। श्रीमद्भागवत महापुराण, हरिवंश पुराण, और विष्णु पुराण में गोवर्धन पर्वत का महत्व विस्तार से बताया गया है।

गोवर्धन पूजा – गोवर्धन पर्वत अन्नकूट महोत्सव और गोवर्धन पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यह त्योहार दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत के प्रतीक रूप में गोबर से गोवर्धन बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यह पर्वत भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार को नष्ट करने की कथा से जुड़ा है।

प्राकृतिक महत्व – गोवर्धन पर्वत को एक अद्वितीय प्राकृतिक धरोहर माना जाता है। यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है और कई तरह की वनस्पतियों और जीवों का निवास स्थान है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह पर्वत भगवान के आशीर्वाद से कभी सूखता नहीं है और यहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र रहता है।

गिरिराज परिक्रमा – गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। 84 कोस यात्रा के नाम से प्रसिद्ध, यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है और इसे लाखों भक्त साल भर करते हैं। ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन महाराज की कृपा प्राप्त होती है।

कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कथा – Krishna & Govardhan Parvat Katha

Shree Krishna lifting Govardhan Hill on his finger

कथा के अनुसार, गोकुल और वृंदावन के लोग प्रतिवर्ष भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते थे। वे मानते थे कि इंद्र देवता वर्षा करते हैं, जिससे उनकी फसलें हरी-भरी होती हैं। बालक कृष्ण ने इस पर प्रश्न उठाया और लोगों को समझाया कि वर्षा के लिए इंद्र की पूजा आवश्यक नहीं है। उन्होंने कहा कि गोवर्धन पर्वत ही असली देवता है। जो उन्हें चारा, जल और संरक्षण प्रदान करता है। यह सुन गोकुल वासी कृष्ण की बात से सहमत होते हैं और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की तईयारी करते हैं |

इंद्र का क्रोध – Indra Dev Gets Angry on Gokul

जब गोकुलवासियों ने कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की, तो इंद्र देवता क्रोधित हो गए। उन्होंने गोकुल पर प्रलयकारी वर्षा और तूफान बरसाया। यह देख सभी गोकुलवासी बहुत भयभीत हो गये, और अपने अपने परिवार जन एवं पशुओं को सुरक्षा प्रदान करने में जुट गये | काफी समय बाद भी जब प्रलयकारी वर्ष नही रुकी तो सभी अपने किये पर पछताने लगे | उन्हें यह आभास होने लगा की उन्होंने इंद्र देव की पूजा न करके बहुत बढ़ा अपराध किया है जिससे वे उन पर नाराज़ हो गये हैं |

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गोवर्धन पर्वत का उठाना – Krishna Lifts Govardhan Hill on Finger

सभी गोकुलवासियों को इतना भयभीत देख श्री कृष्ण ने सबकी सहायता करने की ठानी | तभी बाल श्री कृष्ण सभी को गोवर्धन पर्वत की आड़ में चलने को खा और समझाया की गोवर्धन पर्वत ही सभी को इस विपदा से बचा सकता है | जैसे ही श्री कृष्ण पर्वत के समीप पहुँचते हैं, वे अपनी दिव्य शक्ति से गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया | लोगों को इस तरह आनंद की सांस लेते देख और क्रोधित होते हैं और अपने प्रकोप को और बाधा देते हैं | किन्तु श्री कृष्ण की लीला से गोवर्धन पर्वत के निचे सभी लोग अपने पशुओं के साथ, सात दिनों तक सुरक्षित रहते हैं । उसके बाद इंद्र देव का अहंकार भी चूर हो जाता है और अपने कृत्य का वे भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगते हैं ।

यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार का नाश निश्चित है और प्रकृति की पूजा सबसे श्रेष्ठ है।

गोवर्धन लीला के पश्चात क्या हुआ?

इंद्र ने अपनी गलती को स्वीकार किया और श्रीकृष्ण की शरण में आए। उन्होंने भगवान को “गोविंद” नाम दिया, जिसका अर्थ है “गायों के रक्षक” इस घटना के बाद, गोवर्धन पर्वत को एक दिव्य स्थान माना जाने लगा और इसे गिरिराज महाराज के रूप में पूजा जाने लगा।

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गोवर्धन लीला के पश्चात, गोकुलवासी हर वर्ष गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह परंपरा आज भी जारी है और लाखों श्रद्धालु हर वर्ष गोवर्धन पूजा करते हैं। गोवर्धन पर्वत को गोधन (गायों का धन) का रक्षक माना जाता है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। यह परिक्रमा दिवाली के समय विशेष रूप से की जाती है। भक्तगण गिरिराज महाराज के जयकारे लगाते हुए इस यात्रा को पूरा करते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गोवर्धन पर्वत धीरे-धीरे छोटा हो रहा है। कहा जाता है कि कलियुग के प्रभाव के कारण यह पर्वत प्रतिदिन घटता जा रहा है। भक्तों का मानना है कि यह पर्वत भगवान श्रीकृष्ण के वरदान के कारण आज भी पवित्र है और उनके आशीर्वाद से यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है।

आप कृष्ण एवं गोवर्धन पर्वत लीला को रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण नाटक में देख सकते हैं | यह विडियो तिलक यूट्यूब चैनल द्वारा अपलोड किया गया है |

गोवर्धन पर्वत का प्रमाण – Proof of Govardhan Leela

गोवर्धन पर्वत का उल्लेख स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। इनमें यह कहा गया है कि इस पर्वत का प्रत्येक अंश दिव्यता से युक्त है और यहां की मिट्टी तक पूजनीय है। इसके अलावा, गोवर्धन पर्वत के आसपास कई धार्मिक स्थल और कुंड हैं, जैसे दान घटी मंदिर, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, राधा कुंड और श्याम कुंड जिनका अपना विशेष धार्मिक महत्व है। यह भी कहा जाता है कि गोवर्धन पर्वत की यात्रा करने मात्र से ही पिछले जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। भक्तगण इस पर्वत को सिर झुकाकर प्रणाम करते हैं और इसकी परिक्रमा को जीवन का महत्वपूर्ण अनुष्ठान मानते हैं।