बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है | प्रतिदिन हजारों भक्त यहाँ बांके बिहारी के दर्शन करने आते हैं | जितना पुराना इस मन्दिर का इतिहास है उतनी ही कहानियां इस मन्दिर से जुडी हुई हैं | आईये लेते हैं इस इस मन्दिर सम्पूर्ण ज्ञान |
विषय सूचि
दर्शन का समय
Summer | Winter | |
Morning | 07:45AM – 12:00AM | 08:45AM – 1:00PM |
Evening | 05:00PM – 09:30PM | 04:30PM – 08:30PM |
बांके बिहारी मंदिर इतिहास (Banke Bihari Mandir History)
कहा जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन के गुरु, स्वामी हरिदास भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे | उन्होंने अपना पूरा जीवन और संगीत दोनों ही बांके बिहारी जी की आराधना को समर्पित कर दिया था | वृंदावन में रास लीला स्थली में बैठकर स्वामी हरिदास जी घंटों बिता दिया करते थे | ऐसा कहा जाता है कि जब भी स्वामी हरिदास कृष्ण और राधा की भक्ति में लीन होते थे, तब उन्हें स्वयं श्री कृष्ण और राधा जी दर्शन देने के लिए आते थे | एक दिन स्वामी हरिदास जी के शिष्यों ने उनसे विनती की, कि वह भी श्रीकृष्ण और राधा जी के भव्य स्वरूप के दर्शन करना चाहते हैं | सभी भक्तों के ऐसा कहने पर स्वामी हरिदास मान गए, और अपने शिष्यों के साथ भजन में लीन हो गए |
कुछ दिन बाद जब श्रीकृष्ण और राधा ने दर्शन दिए, तो हरिदास जी ने उनसे कहा की मेरे शिष्य भी आपके दर्शन करना चाहते हैं | तब श्री कृष्ण ने कहा, कि स्वामी हरिदास जी चाहें तो श्री र्क्रिष्ण और राधा जी उसी रूप में वहन ठहर सकते हैं | इस पर स्वामी हरिदास जी कहते हैं, मैं तो एक संत हूँ, मैं रोज़ रोज़ राधा रानी जी के लिए नए आभुष्ण और वस्त्र कहां से लाऊंगा | भक्त की बात सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कराए और वहां से चले गए | जब स्वामी हरिदास ध्यान से बाहर आए तो उन्होंने देखा कि राधा कृष्ण का मिला हुआ भव्य स्वरूप प्रकट हो चुके हैं | इसके बाद वहां मौजूद स्वामी हरिदास और उनके शिष्य श्री कृष्ण और राधा के स्वरूप को देखकर धनी हो गये | उसके बाद स्वामी हरिदास जी और उनके शिष्यों ने उस रूप को बांके बिहारी नाम दिया |
तभी से श्री कृष्ण के इस रूप को बनके बिहारी के नाम से पूजा जाने लगा | आज बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन धाम में सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है | हर पवन अवसर पर इस मन्दिर में हजारों की भीड़ प्रतिदिन दर्शन के लिए आती है |
पहले तो बांके बिहारी जी की पूजा निधिवन में ही की जाती थी | किंतु 1864 में मन्दिर बनने के बाद विग्रह को इस मन्दिर में स्थापित कर दिया गया |
बनके बिहारी मंदिर के रोचक तथ्य
मन्दिर में एक बच्चे की तरह रहते हैं बांके बिहारी
यह मन्दिर एक खास रिवाज़ के लिए भी बड़ा प्रसिद्ध है | यहाँ बांकेबिहारी की पूजा एक छोटे बच्चे के रूप में की जाती है। इसलिए मन्दिर में स्ब्बह के समय कोई आरती नहीं की जाती है और मंदिर परिसर के अंदर कहीं भी घंटियाँ भी नहीं लटकाई जाती | क्योंकि इससे बांके बिहारी को परेशानी हो सकती है।
प्रसिद्ध बांके बिहारी की आरती
केवल कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर, मंगला आरती (सुबह की आरती) की जाती है। वर्ष में केवल एक बार, बांके बिहारी अपने हाथों में बांसुरी धारण करते हैं जो शरद पूर्णिमा के अवसर पर होता है।
भक्तों के साथ ही चल देते हैं बांके बिहारी
आपको जानकर हैरानी होगी कि श्री बांके बिहारी जी के दर्शनों के दौरान हर 2 मिनट के बाद पर्दा बंद कर दिया जाता है | क्योंकि ऐसी मान्यता है कि बाकी बिहारी जी भक्तों के प्रेम में वशीभूत हो जाते हैं | बिहारी जी जब कोई सच्चा भक्त उनकी आंखों में आंखें डालकर निहारता है, तो बांके बिहारी जी भक्तों के प्यार के वशीभूत होकर उसी के साथ चल देते हैं | इसलिए इस मंदिर में आंखें बंद करके पूजा नहीं की जाती बल्कि उनकी आंखों में आंखें डालकर उन्हें निहाँरा जाता है |
बांके बिहारी नाम का कारण
आईये अब जानते हैं इस नाम का मतलब | बांके का अर्थ है ‘झुका हुआ’, और ‘बिहारी’ या ‘विहारी’ का अर्थ है ‘आनंद लेने वाला’। इस प्रकार तीन स्थानों से मुड़े हुए कृष्ण का नाम “बांके बिहारी” पड़ा।