Why Dwarka Submerged in Water? क्यों डूबी द्वारका नगरी ?

Dwarka

भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। द्वारका हिन्दू धर्म के मुख्य चार धामों में से एक है। भगवान श्री कृष्ण की ये नगरी अपने समय की सबसे समृद्ध और खूबसूरत नगरी मानी जाती थी। लेकिन द्वापरयुग में महाभारत के बाद द्वारका नगरी भी नियति की मार से बच न सकी।  जिसका परिणाम ये रहा कि जिस नगरी को समुन्द्र किनारे स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने बसाया था, उसे समुन्द्र की गोद में समाने से स्वयं श्री कृष्ण भी न रोक पाए। लेकिन भगवान श्री कृष्ण की द्वारका नगरी डूबी क्यों ? द्वारका के विनाश का क्या कारन था ?

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हजारों साल बीत जाने के बाद भी आज द्वारका वैज्ञानिकों के शोध का केंद्र है। जहां आज खोजी अभियान के तहत समुन्द्र के तह से निकलने वाले प्राचीन द्वारका नगरी के अवशेष, महाभारत काल की गवाही देते हैं। लेकिन यहां सवाल ये है कि,आखिर द्वारका नगरी कैसे डूबी? तो आइए इसके पौराणिक कारणों पर नजर डालते हैं।

गांधारी का श्राप

द्वारका के डूबने का एक प्रमुख कारण गांधारी का श्राप माना जाता है। महाभारत में वर्णित है कि, युद्ध के बाद जब गांधारी के सभी 100 पुत्र मारे गए और अंत में श्री कृष्ण की वजह से उनका दुर्योधन को बचाने का मकसद भी अधूरा रहा। तो महाभारत युद्ध में कौरवों की हार और अपने पुत्रों की मृत्यु का जिम्मेदार गांधारी ने श्री कृष्ण को ठहराया। इसी रोष में उन्होंने श्री कृष्ण के साथ-साथ उनके समस्त यदुवंश के नाश होने का एक बड़ा भी गंभीर श्राप दिया। जिस श्राप का असर द्वारका में श्री कृष्ण के वंश में देखने को मिला। जो धीरे-धीरे अराजक होने लगे,जनता अधर्मी हो गई और राज्य में बिमारियां फैलने लगीं।

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द्वारका जो एक समय में धर्म और संस्कृति का केंद्र थी, वो गांधारी के श्राप के बाद धीरे-धीरे अपने पतन की ओर अग्रसर होने लगी। इस श्राप के परिणामस्वरूप द्वारका की समृद्धि और वैभव समाप्त हो गया और अंततः यह नगरी समुद्र की लहरों में विलीन हो गई। गांधारी का यह श्राप भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जो द्वारका के डूबने का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है।

श्री कृष्ण पुत्र साम्ब को मिला ऋषि दुर्वासा का श्राप

द्वारका के डूबने का दूसरा प्रमुख कारण,श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को मिला ऋषि दुर्वासा का श्राप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब अपनी शरारतों के लिए जाने जाते थे। जो एक बार ऋषि दुर्वासा के साथ मजाक करने के लिए स्त्री के वेश में उनके पास पहुंचे। साम्ब ने ऋषि से पूछा कि वह गर्भवती हैं और उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी या नहीं। ऋषि दुर्वासा इस मजाक से अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने साम्ब को श्राप दिया कि, उनके गर्भ से लोहे का एक मूसल उत्पन्न होगा जिससे यदुवंश का नाश होगा।

ऋषि दुर्वासा के इस श्राप का प्रभाव यह हुआ कि, साम्ब ने सच में गर्भवती होकर अपने गर्भ से लोहे के मूसल को जन्म दिया। जिसके बाद श्राप से बचने के लिए यदुवंशियों ने उस लोहे के मूसल को पीस कर समुद्र में फेंक दिया। बाद में यही समुद्र में फेंके गए लोहे के ये कण द्वारका के विनाश का कारण बने। इन कणों ने समुद्र में विपरीत प्रभाव डाला और अंततः द्वारका की भूमि समुद्र में डूब गई। इस प्रकार, ऋषि दुर्वासा का श्राप भी द्वारका के विनाश का एक प्रमुख कारण माना जाता है।

द्वारका नगरी का इतिहास

द्वारका नगरी का इतिहास हिन्दू पौराणिक कथाओं और महाभारत में वर्णित है। जिसे भगवान श्री कृष्ण ने जरासंध के आक्रमणों से बचने के लिए, मथुरा छोड़ने के बाद बसाया था। जिसका निर्माण स्वयं देवशिल्पी विश्वकर्मा ने श्री कृष्ण के आदेश पर,समुन्द्र किनारे किया था। जिसमें कई महल, मंदिर और बाजार शामिल थे। द्वारका का अर्थ ‘द्वारों का शहर’ होता है, क्योंकि यह नगरी चारों ओर से समुद्र से घिरी हुई थी और इसमें प्रवेश करने के कई मार्ग थे।

समुद्र में डूबने से पहले द्वारका नगरी ने कई वर्षों का उत्थान और पतन देखा। यहां की समृद्धि, सुंदरता और धार्मिक महत्व ने इसे भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया था। हालांकि आज यह नगरी समुद्र के गर्भ में समा चुकी है, लेकिन इसके अवशेष आज भी इतिहास और पौराणिक कथाओं के माध्यम से जीवित हैं।