कंकाली देवी मंदिर मथुरा – कंस ने कृष्ण समझ कर की थी मारने की कोशिश

कंकाली देवी मंदिर मथुरा

मथुरा के कनक टीला नामक एक प्रसिद्ध चट्टान पर स्थित कंकाली देवी मंदिर, देवी शक्ति के एक रूप को समर्पित है। जिनका संबंध भगवान श्री कृष्ण के दिव्य जन्म से है। विष्णु पुराण और कृष्ण कथा जैसे धार्मिक कथाओं और ग्रंथों की माने तो ये वही देवी थीं, जिनको कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझ कर मारने की कोशिश की थी। लेकिन वो कंस को चेतावनी देकर गायब हो गईं। जिन्हे पहले ‘कंस काली’ कहा जाता था और अब ‘कंकाली’ कहा जाता है। तो आइए इन्हीं देवी कंकाली के मंदिर के बारे में कुछ रोचक बातें जानते हैं। 

मंदिर की बनावट

कंकाली टीले पर मौजूद देवी के इस मंदिर की बनावट बेहद आकर्षक होने के साथ-साथ प्राचीन शिल्पकारी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर की मुख्य संरचना पत्थरों से बनी है, जिसमें सुंदर नक्काशी और उकेरी हुई मूर्तियां मंदिर को और भव्य बनाती हैं। जहां मंदिर की छत और दीवारें बारीकी से उकेरी गई आकृतियों से सजी हुई हैं, जो हिंदू देवी-देवताओं और विभिन्न पौराणिक कथाओं का चित्रण करती हैं।

मुख्य गर्भगृह में देवी कंकाली की मूर्ति स्थापित है, जो समस्त ब्रजमंडल में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजी जाती हैं। मंदिर के प्रांगण में एक विशाल मंडप है, जहाँ श्रद्धालु पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस मंदिर की वास्तुकला में शिखर शैली का प्रयोग हुआ है, जो इसे एक भव्य और दिव्य स्वरूप प्रदान करता है।

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मंदिर का इतिहास

कंकाली मंदिर का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है और इसे प्राचीन हिंदू धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया, इसके स्पष्ट प्रमाण नहीं है। लेकिन यह माना जाता है कि, यह मंदिर गुप्त काल यानि चौथी से छठी शताब्दी के दौरान बना था। उस समय मथुरा एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था। मंदिर का नाम देवी कंकाली के नाम पर पड़ा, जो शक्ति और विनाश की देवी मानी जाती हैं। इस मंदिर ने विभिन्न राजवंशों के अधीन कई चरणों में विस्तार और पुनर्निर्माण देखा है। मुगल काल के दौरान इस मंदिर को आक्रमणों का सामना करना पड़ा, लेकिन इसे बाद में मराठों और स्थानीय शासकों द्वारा पुनर्जीवित किया गया।

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मंदिर के रहस्यमई स्थल

कंकाली मंदिर में कई रहस्यमई स्थल मौजूद हैं, जो इसकी पौराणिक और धार्मिक महत्व को बढ़ाते हैं। इनमें से एक प्रमुख स्थल मंदिर के नीचे स्थित भूमिगत गुफाएँ हैं। गुफाओं में कई गुप्त सुरंगें और कक्ष हैं, जिनकी वास्तविकता आज भी रहस्य बनी हुई है। मंदिर के प्रांगण में एक प्राचीन यज्ञ वेदी भी है, जहाँ प्राचीन काल में यज्ञ और हवन किए जाते थे। इसके अलावा, मंदिर के आसपास कई प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख पाए जाते हैं, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं।

मंदिर के कंकाली टीले पर हीं एक अत्यंत प्राचीन और रहस्यमई  कुआं भी मौजूद है। जिसके बारे में कहा जाता है कि, इस कुएं के जल से स्नान करने से और परिवार के सदस्यों पर इसके जल के छींटे मारने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। जहां आषाढ़ महीने के प्रत्येक सोमवार को कुआं वाली माता का मेला लगता है। इसके साथ हीं नवरात्रि के दिनों में माता कंकाली को सिद्ध पीठ के रूप में भी पूजा जाता है।

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