भगवान श्री कृष्ण का जीवन विहार, विचरण और अस्थिरता से भरा रहा। फिर चाहे उन्हे जन्म के समय कारागार से नन्द गांव ले जाना हो या फिर युवाकाल में उनका वृंदावन से मथुरा चले जाना । यही नहीं, आगे श्री कृष्ण ने मथुरा को छोड़कर द्वारका नगरी बसाई और अंत में द्वारका को भी छोड़ कर चले गए।
माना जाता है की वृन्दावन छोड़ते समय उनकी आयु 10 या 11 वर्ष थी | लेकिन यहां सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि, आखिर उन्होंने वृंदावन का त्याग क्यों किया और आखिर क्यों कान्हा अपने परिवार, सखा और गोपियों के साथ-साथ अपनी जान से प्यारी राधा रानी को छोड़ कर मथुरा चले गए ? तो आइए इसी प्रश्न का उत्तर लेख के माध्यम से समझते हैं।
विषय सूचि
कंस वध व प्रजा रक्षा (Kans Vadh)
श्री कृष्ण के वृंदावन छोड़ने का प्रमुख कारण मथुरा के अत्याचारी राजा कंस का वध कर वहाँ की प्रजा की रक्षा करना था। श्री कृष्ण का मामा कंस अत्यंत निर्दयी और क्रूर था। जब से उसे भविष्यवाणी द्वारा यह ज्ञात हुआ कि, उसकी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका संहार करेगा। तब से उसने देवकी और उनके पति वसुदेव के सभी संतानों को मारने का प्रयास किया। उसने कई राक्षसों को भी श्री कृष्ण को मारने के लिए वृंदावन भेजा, लेकिन वे सभी असफल रहे।
अंततः कृष्ण को मथुरा जाना पड़ा ताकि वे कंस का वध कर मथुरा की प्रजा को उसके प्रकोप से मुक्त करा सकें। श्री कृष्ण ने मथुरा जाकर कंस का वध किया और मथुरा की प्रजा को न्याय और शांति प्रदान की।
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धर्म स्थापना (Dharm Sthapna)
श्री कृष्ण ने महाभारत के माध्यम से धर्म की स्थापना के लिए भी वृंदावन का त्याग किया था। महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच था, जिसमें कृष्ण ने अर्जुन के सारथी और मार्गदर्शक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। जिसमें उन्होंने कर्म, धर्म, और भक्ति के सिद्धांतों को विस्तार से समझाया। महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय और कौरवों के विनाश के पीछे कृष्ण का महत्वपूर्ण योगदान था।
यह युद्ध धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए आवश्यक था। श्री कृष्ण के जीवन का मुख्य उद्देश्य महाभारत के माध्यम से संसार को सत्य, धर्म और न्याय का मार्ग दिखाना था। जिसके लिए उनका वृंदावन का त्याग अनिवार्य था।
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कर्तव्य पालन (Duty)
श्री कृष्ण द्वारा वृंदावन छोड़ने की ये अद्भुत लीला हमें ये भी सीख देती है कि, अपने जीवन में आगे बढ़ने और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अपने परिवार और मित्रों का त्याग से भी संकोच नहीं करना चाहिए। वृंदावन में कृष्ण का जीवन राधा, गोपियों और ग्वालों के साथ अत्यंत आनंदमय था। वे वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति के प्रिय थे और सबके साथ उनका गहरा भावनात्मक संबंध था। परंतु कृष्ण का उद्देश्य केवल वृंदावन तक सीमित नहीं था। इसलिए उन्होंने अपनी समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए। धर्म, न्याय, और सत्य की स्थापना जैसे अपने जीवन के महत्वपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वृंदावन का त्याग किया।
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श्री कृष्ण ने अपने व्यक्तिगत संबंधों और भावनाओं का त्याग कर संसार के कल्याण के लिए कार्य किया। अपने इन कार्यों के माध्यम से उन्होंने धर्म, न्याय, और सत्य की स्थापना के लिए असीम त्याग की प्रेरणा दी। श्री कृष्ण के कर्तव्य पालन की ये त्यागपूर्ण सीख सदियों तक मानव जाति का मार्ग प्रशस्त करती रहेगी।