शायद ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जिसे श्री कृष्ण ने अपनी तरफ ना लुभाया हो | श्री कृष्ण का बाल रूप लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद आने वाले रूप है | इसी समय हमारे कान्हा ने कईं ऐसी लीलाएं दिखाई जो आज भी सभी को चौंका देती हैं | चाहे बात हो गोपियों के कपड़े छुपाने की, या कालिया नाग मर्दन की | इन्ही में से एक लीला भगवान ने दिखाई जो सबको आज भी बहुत प्रिय है |
कन्हैया का वह किस्सा तो सभी को याद होगा जब यशोदा मईया ने उन्हें एक ओखल से बाँध दिया था | जिनको नही पता उन्हें बता दें की उखल काठ या पत्थर का बना हुआ एक गहरा बरतन होता है, जिसमें धान रखकर मूसल (भरी डंडा) से कूटते हैं |
कृष्ण भक्तों को बता दें की जिस उखल से यशोदा मईया ने कान्हा जी को बाँधा था, वह उखल आज भी वृन्दावन के गोकुल गाँव में सुरक्षित है | निचे दिखाए गये चित्र में उसी उखल को दिखया गया है |
दर्शन का समय – 07:30 AM – 8:30 PM
उखल बंधन लीला कथा – Ukhal Bandhan Leela Story
कहानी इस प्रकार है की एक दिन यशोदा मईया कान्हा के रोज़ रोज़ बढती माखन चोरी और मिटटी खाने की आदतों से बहुत तंग आ जाती हैं | क्रोध में आ कर यशोदा मईया कान्हा को एक उखल से बाँध देती हैं, जिससे की कृष्ण कहीं जा न सके | यही से कृष्ण का नाम दामोदर पड़ा | दाम का अर्थ है रस्सी और ओदर का भाव है पेट, तो दोनों को जोड़ कर नाम बना दामोदर |
श्री कृष्ण को उखल से बांध कर यशोदा मईया चली जाती हैं | किंतु स्वयं नारायण के अवतार को एक छोटी सी उखल भला कैसे रोक पाती | उखल से बंधे कृष्ण इधर उधर देखते हैं की कोई आ कर उनकी रस्सी खोल दे | पर उधर कोई न था | तब श्री कृष्ण की नजर 2 अर्जुन के पेड़ों पर पढ़ती है | दरसल ये दोनों पेड़ नल कुबेर और मणि ग्रीव जो की अपने पूर्व जन्म में देवता कुबेर जी पुत्र थे | दोनों ही नारद जी के एक श्राप के कारण पेड़ बन गये थे | क्षमा मांगने पर दोनों को ही नारद जी ने कहा था की द्वापरयुग में जब भगवान अपने बालपन में लीलाएं कर रहे होंगे तब वे स्वयं आ कर आप दोनों को मुक्त करेंगे |
श्री कृष्ण उखल से बंधे हुए धरती पर रेंगते रेंगते आंगन में टहलने लगे | तभी श्री कृष्ण दोनों अर्जुन के पेड़ों के बीच से गुजरते समय, उनकी उखल पदों के बीच फंस जाती है | श्री कृष्ण जोर से आगे की ओर धक्का लगाते हैं ताकि वे फंसी उखल को निकाल सकें | तब श्री कृष्ण इतने बलपूर्व खींचते हैं की दोनों पेड़ों के तने उखड़ जाते हैं | ऐसा करके श्री कृष्ण नल कुबेर और मणि ग्रीव नारद जी के श्राप से मुक्त हो जाते हैं | और इस तरह श्री कृष्ण यमलार्जुन का उद्धार करते है |
दोनों एडों को गिरा देख यशोदा मईया तुरंत कान्हा के पास अति हैं और स्नेह पूर्वक कान्हा को गले लगा लेती हैं | मईया देखतीं हैं की खिन कान्हा को कोई चोट तो नही लगी | तभी कान्हा जी के पिता नान बाबा भी वहां आ जाते हैं और यशोदा मैया को डांटते हैं की उनकी लापरवाही के कारण आज कान्हा को चोट लग जाती |