वृन्दावन में ऐसे कईं जगह हैजं जो श्री कृष्ण को लीलाओं से जुडी हैं | उन्ही में से एक है भांडीरवन | उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में एक महत्वपूर्ण स्थान है |
ऐसी मान्यता है की इसी वन में ब्रह्मा जी ने राधा और कृष्ण का वीवाह कराया था | यहां के प्रमुख स्थान में भांडीर बिहारी मन्दिर, वेनुकुप बलराम मंदिर और भंडार वृक्ष हैं | इस स्थान से श्री कृष्णा बलराम की एक नहीं बल्कि कई लीला संबंध रखती हैं इसलिए ब्रिज यात्रा में यह स्थान ब्रिज के प्रमुख स्थान में से एक है |
भांडीर बिहारी जी
यहां पर राधा जी और श्री कृष्ण की शादी हुई थी | जिसमें ब्रह्मा जी आचार्य बन विवाह परम्परागत तरीके कराया और ब्रह्मा जी ने ही कन्यादान किया था | यह विश्व का इकलौता ऐसा मन्दिर है जिसमे श्री कृष्ण जी के हाथों में बंसी नही और बल्कि सिन्दूर है |
वेणु कूप
जिसे भगवान श्री कृष्णा जी ने अपनी बंसी से खुदा था | जब कंस ने एक राक्षश और नामक दैत्य को कृष्ण जी को मारने के लिए भेजा था | वह दैत्य कृष्ण जी की गाय गे रूप को धारण करके आया था | उस दैत्य का वध भगवान श्री कृष्णा जी ने किया था | तब गोपियां और श्री राधा रानी जी ने कृष्ण जी को कहा की आपने एक गे को मारा है, आपको गौ हत्या का पाप लगेगा | तो इस पाप से मुक्ति के लिए आपको सभी तीर्थ में स्नान करना होगा | तब भगवान श्री कृष्ण ने यहां एक कूप को अपनी बंसी से खोदा था | और सभी तीर्थ का अवाहन यहां किया था | तब इस इस कूप के अंदर सभी तीथों का जल आया और उसके बाद में इसी के जल से भगवान श्री कृष्णा जी ने यहां स्नान किया था और अपने जो गौ हत्या के पाप से उनको मुक्ति मिली थी |
पास में रहने वाले लोगों का कहना है की सोमवती अमावस्या के दिन सुबह 4 से 5 तक इस कूप का जल दुधिया रंग का हो जाता है | ऐसा कहा जाता है की उस वक्त इस कूप में समस्त देवी देवताओं का वास होता है | अगर इस दिन महिला इस कूप के जल में स्नान कर भांडीर जी के मुकुट के दर्शन कर २ गोबर के स्वस्तिक बनाती है तो उसे सन्तान प्राप्ति होती है |
दाऊ जी महाराज मन्दिर
यहां बलदाऊ जी महाराज का बड़ा दिव्या अद्भुत दिव्या दर्शन है क्योंकि बलदेव जी महाराज ने यहां एक असुर का वध किया है | भागवत जी में उसका लेख आता है | एक दिन इसी जगह एक खेल चल रहा था | खेल में शर्त होती थी की जो भी हार जाएगा वो जीते हुए सखा को अपने कंधे पर चढाएगा |
यह भी पढ़ें – दाऊ जी मंदिर मथुरा (Dau Ji Mandir) जहाँ हर वर्ष होता विशाल हुरंगे का योजन
तो एक दिन प्रलंबसुर नाम का असुर आकर उसी खेल में कन्हैया जी की पारी में सम्मिलित हो गया | श्री कृष्ण के सखा खेल में हार जाते हैं | तो शर्त के मुताबिक कृष्ण के सखाओं को अपने कंधे पर बलराम जी के सखाओं को बिठाना था | तो प्रलंबसुर को भी बलराम जी को अपने कंधों पर बिठाना पडा | सखाओं कुछ दूर चलते ही राक्षस हवा में उड़ने लगा | तब बलराम जी को पता चलता है की यह कोई सखा नही है |
यह देख दोनों में बहस होने लगी | राक्षस के ज्यादा धमकाने पर बलराम जी ने अपनी शक्तियों का प्रोयोग कर अपना वजन बाधा लिया | अधिक भार होने की वजह से हवा में उढ़ता राक्षस धीरे धीरे ज़मीन पर आने लगा | जैसे ही ज़मीन पर आने वाले थे, बलराम जी ने राक्षस के सर में एक मुक्का मारा | तभी उस राक्षस की मृत्यु हो जाती है | और इस प्रकार यह मन्दिर दाऊ जी महाराज को समर्पित हुआ |